ब्रह्मज्ञान और सनकादिक ऋषि ---
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जब भी ब्रह्मज्ञान की बात होती है तो सबसे पहले स्वतः ही भगवान सनतकुमार को नमन होता है। वे ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। उन्हीं की कृपा से हम सब को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हुआ है। हर युग में और हर कालखंड में वे भक्तों के समक्ष प्रकट हुए हैं। उन्होने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम देवर्षि नारद को दिया था जो स्वयं भक्ति के आचार्य हैं।
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ब्रह्मा जी का प्राकट्य जल में कमल के पुष्प पर हुआ था। उन्होने उस पुष्प के डंठल से नीचे उतर कर अपना मूल जानना चाहा। कुछ समझ में नहीं आया तो बापस कमल पर आकर बैठ गए। तभी उन्हें "तपस तपस" शब्द सुनाई दिया, जिसे सुनकर वे समाधिस्थ हो गए और सौ वर्ष तक तपस्यारत रहे।
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तत्पश्चात भगवान विष्णु से उन्हें सृष्टि रचना की प्रेरणा मिली। ब्रह्मा जी ने सबसे पहिले नित्यविरक्त नित्यसिद्ध चार मानस पुत्रों -- सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार की रचना की। ये चारों भाई -- भगवान विष्णु के प्रथम अवतार माने जाते हैं। ये चारों भी तपस्या में ही लीन हो गए, और सर्वदा पाँच वर्ष की आयु के ही रहे। हजारों वर्ष व्यतीत हो गए, ये न तो कभी जवान हुये और न कभी बूढ़े हुए। पूरे ब्रह्मांड में ये भ्रमण करते हैं, और जहाँ भी इनकी कृपा होती है, वहीं प्रकट हो जाते हैं। इस पृथ्वी पर तो भगवान सनतकुमार की विशेष कृपा रही है।
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दक्षिण भारत के तमिलनाडु में कुछ लोगों की मान्यता है कि भगवान शिव के षंमुखी दूसरे पुत्र कार्तिकेय, जिन्हें स्कन्द, कुमार और आरमुगम् आदि भी कहा जाता है, वे भगवान सनतकुमार के ही मानस रूप हैं। पार्वती जी ने सनतकुमार जैसा ही पुत्र चाहा था। वे ही देवताओं के सेनापति बने थे। उनके पास वेलायुध नाम का एक अमोघ अस्त्र भी था।
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वेदों के ज्ञान के बारे में तो एक दूसरी ही कथा प्रचलित है कि वेदों का ज्ञान ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ मानसपुत्र अथर्व ऋषि को दिया, अथर्व ने सत्यवाह को, सत्यवाह ने अंगिरस को, अंगिरस ने अंगिरा को, और अंगिरा ने लोमश आदि ऋषियों को दिया। इस तरह वेदों का ज्ञान फैला।
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बात भगवान सनतकुमार की चल रही थी, भटक कर दूर चले गए। भगवान सनतकुमार को नमन। हमारे में इतनी पात्रता विकसित हो कि भगवान के इन अवतारों का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें। ॐ नमो भगवते सनतकुमाराय !!
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० अक्तूबर २०२२
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