Monday, 24 October 2022

भगवान के साथ हम सर्वत्र कैसे रहें? ---

 भगवान के साथ हम सर्वत्र कैसे रहें? ---

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आने वाले पंच दिवसीय दीपोत्सव और सभी उत्सवों की अग्रिम शुभ कामनाएँ, और नमन !! मैं सदा आपके साथ एक हूँ। कहीं भी जाने को कोई स्थान नहीं है। जहाँ सब हैं, वहीं मैं भी सभी के साथ एक हूँ। आभासीय जगत में कहीं भी रहूँ, किसी से मिलूँ या न मिलूँ, वह दूसरी बात है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते। वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
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भगवान के साथ हम सर्वत्र कैसे रहें? इस का उत्तर यह है कि हम ऊंचे से ऊंचे स्थान पर अपनी चेतना में रहें। ऊंचे से ऊंचे स्थान पर रहेंगे तो सर्वत्र रहेंगे। वह स्थान कौन सा है? ध्यानस्थ होकर अपनी चेतना में इस शरीर से बाहर जितना ऊपर आप जा सकते हैं, चले जाइए। वहाँ एक ज्योतिर्मय जगत है। वहीं परमात्मा हैं। वह ज्योति आप स्वयं हैं। उसी का ध्यान कीजिये ---
"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥१५:१॥"
"अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके॥१५:२॥"
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा॥१५:३॥"
"ततः पदं तत्परिमार्गितव्य यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी॥१५:४॥"
"निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्॥१५:५॥"
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥१५:६॥"
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उसी के बारे में श्रुति भगवती कहती है --
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति॥" (कठोपनिषद् २/२/१५)
अन्वयार्थ -
"तत्र सूर्यः न भाति। चन्द्रतारकं न। इमाः विद्युतः न भान्ति। अयम् अग्निः कुतः भायात् । तं भान्तं एव सर्वं अनुभाति। तस्य भासा इदं सर्वं भाति ॥"
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और कहीं जाने को स्थायी स्थान नहीं है। वही हमारा स्थायी घर है। वही हमारा स्थायी निवास है। वहीं रहने के लिए हमने यह जन्म लिया है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ अक्तूबर २०२२

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