एक ही तड़प है मन में -- भगवान के निष्ठावान ज्ञानी भक्तों के दर्शन हों। परमात्मा में निजात्मा का विलय पूर्ण हो।
ईशावास्योपनिषद के पश्चात केनोपनिषद के आरंभ में ही अटक गया हूँ। आगे बढ़ने का और मन ही नहीं करता। भगवान में ही स्थिति हो गयी है। भगवान की जो छवि मेरे समक्ष आई है, वह अति मनभावन है। उसी में समर्पित होकर यह सारा जीवन कट जाए। और कुछ भी नहीं चाहिए।
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कोई मोक्ष नहीं, कोई मुक्ति नहीं, कोई ज्ञान नहीं, कुछ भी नहीं चाहिए। अब शब्दों का कोई महत्व नहीं रहा है। भगवान सब शब्दों से परे अवर्णनीय हैं। कुछ भी अब और पढ़ने की इच्छा नहीं है। उनकी इस अवर्णनीय छवि में ही मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व विलीन हो जाए।
एक ही तड़प है मन में -- भगवान के निष्ठावान ज्ञानी भक्तों के दर्शन हों। परमात्मा में निजात्मा का विलय पूर्ण हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०२२
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