सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं .....
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> संसार में सुख और दुःख दोनों हैं| क्या यह संभव है कि सुख तो बना रहे पर दुःख छुट जाए?
< सुख है परमात्मा से समीपता, और दुःख है परमात्मा से दूरी| सुख का अभाव ही दुःख है, और कुछ नहीं|
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> अब प्रश्न उठता है कि क्या आत्मा और परमात्मा, मन की कल्पना मात्र ही तो नहीं हैं?
< अभी तो चाहे उन्हें कल्पना ही मान लो| कुछ न कुछ तो मानना ही पड़ता है, वैसे ही इन्हें भी मान लो| कई बार गणित में भी प्रश्न का हल करने के लिए कुछ मानना पड़ता है|
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> प्रश्न यह भी उठता है यदि परमात्मा सत्य है तो वे विस्मृत क्यों हो जाते हैं?
< विस्मृति हमारा दोष है, न कि परमात्मा का|
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> ये सब प्रश्न किस के दिमाग में उठते हैं?
< मेरे|
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***** तो यह मैं और मेरा कौन है, इस का उत्तर ही सब प्रश्नों का उत्तर दे देगा| सारे प्रश्न अंतहीन हैं, इनका कोई अंत नहीं है| सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं| एक बार मन शांत हो जाए तो ये सब प्रश्न भी तिरोहित हो जायेंगे| *****
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०१८
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> संसार में सुख और दुःख दोनों हैं| क्या यह संभव है कि सुख तो बना रहे पर दुःख छुट जाए?
< सुख है परमात्मा से समीपता, और दुःख है परमात्मा से दूरी| सुख का अभाव ही दुःख है, और कुछ नहीं|
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> अब प्रश्न उठता है कि क्या आत्मा और परमात्मा, मन की कल्पना मात्र ही तो नहीं हैं?
< अभी तो चाहे उन्हें कल्पना ही मान लो| कुछ न कुछ तो मानना ही पड़ता है, वैसे ही इन्हें भी मान लो| कई बार गणित में भी प्रश्न का हल करने के लिए कुछ मानना पड़ता है|
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> प्रश्न यह भी उठता है यदि परमात्मा सत्य है तो वे विस्मृत क्यों हो जाते हैं?
< विस्मृति हमारा दोष है, न कि परमात्मा का|
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> ये सब प्रश्न किस के दिमाग में उठते हैं?
< मेरे|
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***** तो यह मैं और मेरा कौन है, इस का उत्तर ही सब प्रश्नों का उत्तर दे देगा| सारे प्रश्न अंतहीन हैं, इनका कोई अंत नहीं है| सारे प्रश्न सीमित और अशांत मन की देन हैं| एक बार मन शांत हो जाए तो ये सब प्रश्न भी तिरोहित हो जायेंगे| *****
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०१८
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