Wednesday 9 May 2018

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ..... पर एक जिज्ञासा ....

एक जिज्ञासा .....
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||
अर्थात् वेद त्रैगुण्यविषयक हैं परंतु हे अर्जुन तू निस्त्रैगुण्य हो| नित्य सत्त्वस्थ निर्योगक्षेम व आत्मवान हो||
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यहाँ एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है| मनुष्य त्रिगुणों में बंधा होता है इसलिये जन्म लेता है| निस्त्रेगुण्य यानी त्रिगुणातीत होने पर तो इस देह में जीवित रहने का कोई कारण ही नहीं रहता| निस्त्रेगुण्यता ही मेरी समझ से जीवन्मुक्ति है| मेरी समझ से ऐसे व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा से ही देह में जीवित रहते होंगे| वे किसी भी प्रकार के कर्मफल में तो बंध ही नहीं सकते|
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जो मनीषी इस विषय को समझते हैं वे कृपया थोड़ी टिप्पणी करने की कृपा करें|
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सप्रेम धन्यवाद| ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर 
६ मई २०१८ 
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स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी की टिप्पणी :--
नारायण । श्री मद्भगवद्गीताजी वाले कृष्ण कहते है " त्रैगुण्यविषया वेदाः " । अर्थात् त्रिगुणात्मक संसार । यह संसार है विषय जिसका वह वेद है । आप गणित की कोई पुस्तक लेकर बैठे हैं , हम पूछते हैं कि ' इस पुस्तक का विषय क्या है ? ' तो आप यही कहेंगे न कि इसका विषय गणित है । इसी प्रकार संसार के सारे ही कार्यकारण - भावों को , साधन - साध्य भावों को बताने वाला होने से संसार ही वेद का विषय है। वेद .संसार की सारी चीजों को बताता है । संसार को बताते हुए भी वह परमात्मा का साधक भी है । जो परमात्मा का साधक है वह परमात्मा को चाहता है । विषय को वह नहीं चाहता अर्थात् विषय की कामना वाला नहीं है इसलिए वह परमात्मा का साधक है ।

भगवान् भाष्यकार कहते हैं कि संसार जिस वेद से प्रकाशित होता है उसके अन्दर तो वे अव्यवसायी बुद्धि वाले भोगैश्वर्य की प्रसक्ति से लगे रहते हैं । परन्तु जो निष्काम हैं अथवा कामना से रहित हैं उसके लिये वेद परमात्मा का बोध करा देता है । परमात्मा की कामना ही कामना से रहित होना है । जैसे चिकित्सक कहता है ' तीन दिन की दवाई ले जाओ , और कुछ मत खाना ' , अर्थात् दवाई के अतिरिक्त कुछ मत खाना ; इसी प्रकार कामना को छोड़ो ' अर्थात् आत्मा को छोड़कर दूसरी अनात्म पदार्थ की कामना मत करो । ऐसा नहीं कि आत्मा की कामना मत करो ! जो निष्काम है उसे वेद सांसारिक फल नहीं दे सकता है । इसलिए गीता वाले कृष्ण कहते हैं कि - हे अर्जुन तुम त्रिगुण से रहित हो जाओ । भाष्यकार भगवान् शंकराचार्य महाभाग इसका अर्थ करते हुए कहते हैं " निष्कामो भव इत्यर्थः " कामना से रहित हो जाओ ।

नारायण ! कुछ आधुनिक लोग अपनी बुद्धि लगाते हैं और गीताजी के " त्रैगुण्यविषया वेदाः .... " श्लोक का उल्टा अर्थ करते है । वे कहते हैं कि वेद तीन गुणों की बात बताता है । भगवान् श्री कृष्ण इससे ऊपर की बात बताते हैं । " त्रैगुण्यविषया वेदाः " के पहले भगवान् नें यह नहीं कहा कि " तुम इनसे रहित हो जाओ " । भगवान् ने तो यह कहा कि - अर्जुन तुम निस्त्रैगुण्य हो जाओ । अगर वैसा कहना होता तो भगवान् यह कहते कि " निर्वेदो भव " वेद के झंझट को छोड़ या वेद को छोड़ । उल्टा भगवान् ने तो यह बताया है कि " निस्त्रैगुण्य " वेद के विषय को बतलाया है कि जो अव्यवसायी बुद्धि वाले हैं , जिनका मन भोगैश्वर्य से अपहृत हुआ है ; वे वेद का वास्तविक ऊद्देश्य नहीं समझ पाते ।

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स्वामी आत्मशिव शिव की टिप्पणी :--
इस लौकिक जगत की एक भी वस्तु के साथ राग या द्वेष से हमे पुनर्जन्म को बाध्य होना पड़ेगा तीनों गुणों से पार तभी हो सकता है जब वह अपने स्वरूप को अनुभव निरंतरता मे करे यह तभी संभव है जब वह निर्विकल्प समाधि को अनुभव करे क्योंकि सविकल्प मे ध्यान के समय ही अपने स्वरूप को अनुभव करता है जीवन मुक्त होने पर महापुरुष धरती पे रहने कुछ वासना रखते है जैसे रामकृष्ण परमहंस का खाने के मामले मे दृष्टांत है
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