Wednesday, 9 May 2018

भगवान से जो प्रेरणा मिले उस का आचरण ही एकमात्र विकल्प है....

यह सृष्टि हम सब के विचारों, भावों और संकल्पों की ही सामूहिक अभिव्यक्ति है| हमारे विचार, भाव और संकल्प ही साकार होकर चारों ओर व्यक्त हो रहे हैं| जब पतन की अति हो जाती है तब विनाश भी होता है| अब जो स्थिति है उसमें यदि वर्तमान सभ्यता का विनाश भी हो जाए तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा| जो नई सृष्टि बसेगी वह इस वर्तमान की सृष्टि से तो अच्छी ही होगी| मुझे तो किसी रूपांतरण की भी कोई संभावना नहीं दिखाई देती| महाभारत के युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भी शांति और सुलह के प्रयास किये थे जो असफल रहे| मेरी सोच और विचार मेरे मन में स्पष्ट हैं, कहीं कोई भ्रम और संशय नहीं है| मुझे बाहर के विश्व से अब कोई अपेक्षा या उम्मीद नहीं है| बाहर जो दिखाई दे रहा है वह एक महा ढोंग और पाखंड मात्र है| इसका आकर्षण समाप्त ही हो जाए तो अच्छा है|
भगवान से जो प्रेरणा मिले उस का आचरण ही एकमात्र विकल्प है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ मई २०१८

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