यह सृष्टि हम सब के विचारों, भावों और संकल्पों की ही सामूहिक
अभिव्यक्ति है| हमारे विचार, भाव और संकल्प ही साकार होकर चारों ओर व्यक्त
हो रहे हैं| जब पतन की अति हो जाती है तब विनाश भी होता है| अब जो स्थिति
है उसमें यदि वर्तमान सभ्यता का विनाश भी हो जाए तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं
होगा| जो नई सृष्टि बसेगी वह इस वर्तमान की सृष्टि से तो अच्छी ही होगी|
मुझे तो किसी रूपांतरण की भी कोई संभावना नहीं दिखाई देती| महाभारत के
युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भी शांति और सुलह के प्रयास किये थे
जो असफल रहे| मेरी सोच और विचार मेरे मन में स्पष्ट हैं, कहीं कोई भ्रम और
संशय नहीं है| मुझे बाहर के विश्व से अब कोई अपेक्षा या उम्मीद नहीं है|
बाहर जो दिखाई दे रहा है वह एक महा ढोंग और पाखंड मात्र है| इसका आकर्षण
समाप्त ही हो जाए तो अच्छा है|
भगवान से जो प्रेरणा मिले उस का आचरण ही एकमात्र विकल्प है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ मई २०१८
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ मई २०१८
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