जीवन का एक भटकाव समाप्त हुआ। अब किसी के उपदेश, प्रवचन या मार्गदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं रही है। जब गंतव्य समक्ष होता है तब किसी मार्गदर्शिका या मानचित्र की आवश्यकता नहीं पड़ती।
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मुझ में जितनी कमियाँ हैं, उतनी तो संभवतः किसी में भी नहीं होंगी। लेकिन भगवान ने सबकी उपेक्षा कर दी। उन्होने मेरे हृदय का प्रेम, तड़प और अतृप्त-प्यास ही देखी। इनके अतिरिक्त मुझ अकिंचन के कुछ था भी नहीं।
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सच्चिदानंद के लिए हृदय में एक प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहे। वे ही गुरु रूप में आते हैं, और कूटस्थ-चैतन्य में स्थित कर अपना बोध करा कर चले जाते हैं। अब कोई अन्य नहीं है। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है, मेरा भी नहीं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२२
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