"यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥१०:३९॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - हे अर्जुन ! जो समस्त भूतों की उत्पत्ति का बीज (कारण) है, वह भी में ही हूँ, क्योंकि ऐसा कोई चर और अचर भूत नहीं है, जो मुझसे रहित है॥
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जब सब कुछ परमात्मा ही है तो अब उनके अतिरिक्त अन्य किसी से कोई अपेक्षा भी नहीं रही है। अब किसी भी तरह के परिवाद, निंदा और आलोचना (Complain, Condemn, Criticize) का समय नहीं है। जो भी समय शेष है, उसमें सिर्फ हरिःचिंतन, अन्य कुछ भी नहीं।
सारी कामनाएँ, सारी अपेक्षाएँ, और सारे विचार -- परमात्मा को समर्पित हैं। हृदय में जब परमात्मा स्वयं बिराजमान हैं, तो उन्हें छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाएँ? जो भी बात कहनी है, प्रत्यक्ष परमात्मा से ही कहेंगे। अधिक समय हमारे पास नहीं है।
संसार को, और परमात्मा की समस्त रचना को धन्यवाद और नमस्ते !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०२४
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