वर्तमान यूक्रेन-रूस विवाद पर मैं अपने विचारों पर दृढ़ हूँ ---
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पूर्व सोवियत संघ में यूक्रेन (सही नाम - "उकराइन") सबसे अधिक पढे-लिखे, सभ्य और समृद्ध लोगों का गणराज्य था। वर्तमान में तोअमेरिकन षड़यंत्रों का शिकार होकर यूक्रेन सबसे अधिक पिछड़ा, गरीब और ड्रग लेने के अभ्यस्त नशेड़ियों का देश बन चुका है। अमेरिका की कुटिल चालों से ही सोवियत संघ का विघटन हुआ था। हर गणराज्य को स्वतन्त्रता देने का निर्णय तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन का था जो एक भयंकर भूल थी।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इन दोनों ही देशों की विरासत साझी है। यूक्रेन की आज की राजधानी कीव (Киев) से ही रूस का जन्म हुआ था। दोनों की एक ही नस्ल है, और दोनों एक ही देश थे। जब रूस कमजोर पड़ा तब जो भाग आज यूक्रेन कहलाता है, वह विदेशी सत्ताओं के आधीन हो गया था, और यूक्रेन कहलाया। सोवियत संघ मे स्टालिन ने इसे एक पृथक गणराज्य के रूप में ही रखा। स्टालिन ने यहाँ के लोगों पर सामूहिक कृषि के नाम पर बहुत अधिक भयंकर अत्याचार किए थे, जिस से लाखों लोग मरे।
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चीन पर अधिकार करने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह चीनियों को पहले तो अफीम खाने की आदत डाली, और जब उन्हें अफीम खाने की आदत पड़ गई तब उन्हें गुलाम बना लिया। अमेरिका ने भी यही चाल चली। अमेरिका ने पहले तो धनबल से यूक्रेन की निर्वाचित सरकार को हटवाया, और फिर अपने चहेते ड्रग-एडिक्ट फिल्मी हास्य अभिनेता झेलेंस्की को वहाँ का राष्ट्रपति बनवाया। फिर ड्रग की आसान उपलब्धता कराकर पूरे देश को नशेड़ी बना दिया। तुर्की के रास्ते अफगानिस्तान से अमेरिकी संरक्षण में खूब अफीम मंगवा कर यूक्रेन में सहजता से उपलब्ध करवाई जाती है। अफीम का अर्क वहाँ के लोगों की मुख्य पसंद है। युवा लोगों के बीच में ड्रग का नशा बढ़ रहा है।
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नशा और यौन-स्वच्छंदता यूक्रेन में बहुत अधिक है, इसलिए एचआईवी का संक्रमण भी बढ़ रहा है। यूक्रेन की हजारों लड़कियाँ दूसरे देशों में जाकर वेश्यावृत्ति से धन कमाती हैं। थाइलैंड में तो इनकी भरमार है। भारत में भी बड़े शहरों में जो गोरे रंग की वेश्याएँ घूमती हैं वे सब यूक्रेनी हैं जो स्वयं को रशियन बताती हैं। यूरोप में ड्रग की तस्करी यूक्रेन के रास्ते से तुर्की द्वारा की जाती है। तुर्की में ड्रग का सारा माल अफगानिस्तान से आता है, जिसमें अमेरिकी धनपतियों का भी हाथ है। पूरी दुनियाँ को इसका पता है। इस धंधे में अरबों डॉलर लगे हैं इसलिए कोई इसे रोक नहीं सकता। कोई आवाज उठाता है तो तुरंत उसकी हत्या कर दी जाती है। हम चुपचाप स्वयं को व अपनी संतानों को बचाकर रखें, और कुछ भी नहीं कर सकते।
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यूक्रेनियों को नशीली दवाओं का अभ्यस्त बना दिया गया है। यूक्रेन को अरबों डालर की सहायता मिलती है जिसका दुरुपयोग ही होता है। अब स्थिति यह है कि यूक्रेन को केवल ड्रग का सेवन करने और NATO व यूरोपियन यूनियन से भीख माँगने में ही रुचि है। NATO और यूरोपीयन यूनियन अब यूक्रेन जैसे निकम्मे देश को अपना सदस्य भी नहीं बनाना चाहते। NATO इस निकम्मे देश को रूस के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिका व NATO देशों का उद्देश्य रूस को नष्ट करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होने झेलेंस्की व यूक्रेन को एक बलि का बकरा बना दिया है। झेलेंस्की एक मूर्ख व नशेड़ी व्यक्ति है जिसने यूरोपियन यूनियन व NATO का सदस्य बनने के लालच में अपने देश का विनाश करा दिया है।
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रूस के विरुद्ध NATO को अपने यहाँ बुलाने और यूक्रेन में रूसियों का नरसंहार करने के कारण ही रूस को मजबूर होकर यह युद्ध छेड़ना पड़ा है। यूक्रेन यदि घोषणा कर देता कि उसे NATO में सम्मिलित नहीं होना है, तो न तो यह लड़ाई होती और न इतना विनाश होता। सत्ता के लोभ में झेलेन्स्की इस युद्ध को भड़काने में ही लगा है। इसमें सामान्य बुद्धि भी नहीं है।
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दोनवास में रूसियों के नरसंहार को NATO के देश समर्थन ही दे रहे हैं। उनका Human Rights वाला शोर एक ढोंग ही है। रूसियों के नरसंहार से व्यथित होकर ही रूस को मजबूरी में यह युद्ध आरंभ करना पड़ा। रूस की गलती यही है कि उसने आठ साल की देरी कर दी। आठ साल पहिले ही उसे यह युद्ध शुरू कर देना चाहिए था। अमेरिका के राष्ट्रपति वायडन के बारे में पहिले लिख चुका हूँ, वे भले आदमी नहीं हैं। उनकी पार्टी भी भली नहीं है। झेलेंस्की तो ड्रग और डॉलर के लिए अपने देश को ही बेचने के लिए तैयार बैठा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिकी प्रस्ताव को पास कराने के लिए इतने अधिक देशों से समर्थन दादागिरी, और डॉलर के बल पर ही लिया गया है। रूसी पक्ष को सेन्सरशिप और प्रतिबंधों द्वारा दबाया गया है। भारत की प्रेस पर मेरी आस्था बिलकुल नहीं रही है।
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हे प्रभु, इन महा दुष्टों से भारत की रक्षा करो। वंदे मातरम् !! भारत माता की जय !!
जय जननी जय भारत !!
६ मार्च २०२२
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