अपनी साधना/उपासना स्वयं करो, किसी से कोई अपेक्षा मत रखो। दूसरों के पीछे-पीछे भागने से कुछ नहीं मिलेगा। जो मिलेगा वह स्वयं में अंतस्थ परमात्मा से ही मिलेगा। किसी पर कटाक्ष, व्यंग्य या निंदा आदि करने से स्वयं की ही हानि होती है।
"तुलसी माया नाथ की, घट घट आन पड़ी। किस किस को समझाइये, कुएँ भांग पड़ी॥"
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मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझमें हृदयस्थ भगवान मुझे प्रेरणा देते हैं और लिखवाते हैं। वे ही समस्त सृष्टि हैं (ॐ विश्वं विष्णु:-वषट्कारो भूत-भव्य-भवत- प्रभुः)। मुझे निमित्त बनाकर वे स्वयं ही स्वयं की साधना कर रहे हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। सारी सृष्टि मेरे साथ, और मैं सारी सृष्टि के साथ एक हूँ। जब स्वयं भगवान हर समय मेरे साथ हैं, तो मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। आप सब में मैं स्वयं को ही नमन करता हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२७ फरवरी २०२२
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