Monday, 18 April 2022

"मैं हूँ", -- यही मेरी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है, समाधान भी यही हो ---

 "मैं हूँ", -- यही मेरी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है, समाधान भी यही हो ---

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परमात्मा ने मुझे यह जन्म ही क्यों दिया? मेरे न होने से उनकी सृष्टि को क्या फर्क पड़ने वाला था? न तो परमात्मा मुझे जन्म देते और न ही इतनी सारी समस्याएँ मेरे समक्ष होतीं। मेरे होने से ही सारी समस्याएँ हैं। मैं यदि नहीं होता तो सिर्फ परमात्मा ही होते।
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स्वयं को व्यक्त करने के लिए परमात्मा स्वयं ही यह सृष्टि बन गये हैं। जीवन और मृत्यु में मुझे कोई वासना नहीं रखनी चाहिए। परमात्मा ही मेरे एकमात्र अवलम्बन हों। मैं हूँ, -- यही मेरी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है। अब से तो वे ही वे रहेंगे, मैं नहीं। गीता में उनका दिया हुआ आश्वासन आगे का मार्ग दिखाता है --
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् -- अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ॥
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“प्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाय” --
एकमात्र आत्मा ही सम्पूर्ण विश्व का अधिष्ठान और पारमार्थिक सत्य है। अनन्यभाव से मुझे अपने आत्मस्वरूप का ही ध्यान करना चाहिए। स्वयं की पृथकता के बोध की आहुति परमात्मा में देनी ही पड़ेगी, अन्य कोई विकल्प नहीं है। जड़-चेतन यह समस्त सृष्टि परमात्मा से व्याप्त है --
"ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌॥"
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सरा जगत ही विष्णु है। भगवान ने स्वयं को ही इस विश्व के रूप में व्यक्त किया है --
"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च॥"
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अंत में एक ही बात कह सकता हूँ --
"तेरे दीदार के काबिल कहाँ मेरी नजर है?
वो तो तेरी रहमत हैं, जो तेरा रुख इधर है॥"
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ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ मार्च २०२२

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