महान बनने के लिए स्वयं को महत् तत्व यानि सर्वव्यापी परमात्मा से जुड़ना होगा ........
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जो महत् तत्व से जुड़ी है वह आत्मा ही महात्मा है, न कि अन्य कोई| महत् तत्व से जुड़ा व्यक्ति ही महान है| महत् तत्व है परमात्मा की अनन्तता और सर्वव्यापकता| हमें परमात्मा से जुड़ कर स्वयं को महान बनना होगा| सिर्फ बातों से हम महान नहीं बन सकते| एक छोटी और एक बड़ी लकीर साथ साथ हैं| छोटी लकीर बड़ी बननी चाहे तो उसे स्वयं को बड़ी बनाना होगा| दूसरी को छोटी बनाकर बड़ी बनने का प्रयास अंतत विफल होगा| बड़ा बनने के प्रयास में कोई पंजों के बल चले तो वह बड़ा नहीं कहलायेगा, ठोकर खाकर शीघ्र ही नीचे गिरेगा| सिर्फ आत्मप्रशंसा से कोई बड़ा नहीं बन सकता| ऐसे ही दुर्भावनावश या मतान्धतावश दूसरों का गला काटकर बड़ा बनने वाले कभी बड़े नहीं बन सकते| जिस अस्त्र-शस्त्र से वे दूसरों को मारते हैं उन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से एक दिन वे स्वयं भी मारे जायेंगे| प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी| कालखंड में स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे|
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वर्षा का जल पर्वतशिखर और तालाब पर समान रूप से ही गिरता है| यदि पर्वतशिखर का जल बहकर तालाब में आता है तो इसमें पर्वतशिखर का कोई दोष नहीं है| जो गिरा हुआ है उसे सब गिराते हैं और जो शिखर पर है उसको सब नमन करते हैं| हमें शिखर बनना होगा तभी हमारा वर्चस्व और सम्मान होगा| हमारा पतन हुआ हमारी सद्गुण विकृतियों से| जिस तरह व्यक्ति के कर्म होते हैं वैसे ही समाज और राष्ट्र के भी सामूहिक कर्म और उनके फल होते हैं जिनका परिणाम अवश्य मिलता है| ये हमारे कर्म ही थे जिनके कारण हमारा पतन हुआ और हम इतनी पीड़ाओं और कष्टों में से गुजरे हैं और हैं| हम उनसे आध्यात्मिकता द्वारा ही मुक्त हो सकते हैं| इसके लिए हमें स्वयं महान बनना होगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१६
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जो महत् तत्व से जुड़ी है वह आत्मा ही महात्मा है, न कि अन्य कोई| महत् तत्व से जुड़ा व्यक्ति ही महान है| महत् तत्व है परमात्मा की अनन्तता और सर्वव्यापकता| हमें परमात्मा से जुड़ कर स्वयं को महान बनना होगा| सिर्फ बातों से हम महान नहीं बन सकते| एक छोटी और एक बड़ी लकीर साथ साथ हैं| छोटी लकीर बड़ी बननी चाहे तो उसे स्वयं को बड़ी बनाना होगा| दूसरी को छोटी बनाकर बड़ी बनने का प्रयास अंतत विफल होगा| बड़ा बनने के प्रयास में कोई पंजों के बल चले तो वह बड़ा नहीं कहलायेगा, ठोकर खाकर शीघ्र ही नीचे गिरेगा| सिर्फ आत्मप्रशंसा से कोई बड़ा नहीं बन सकता| ऐसे ही दुर्भावनावश या मतान्धतावश दूसरों का गला काटकर बड़ा बनने वाले कभी बड़े नहीं बन सकते| जिस अस्त्र-शस्त्र से वे दूसरों को मारते हैं उन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से एक दिन वे स्वयं भी मारे जायेंगे| प्रकृति उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगी| कालखंड में स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे|
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वर्षा का जल पर्वतशिखर और तालाब पर समान रूप से ही गिरता है| यदि पर्वतशिखर का जल बहकर तालाब में आता है तो इसमें पर्वतशिखर का कोई दोष नहीं है| जो गिरा हुआ है उसे सब गिराते हैं और जो शिखर पर है उसको सब नमन करते हैं| हमें शिखर बनना होगा तभी हमारा वर्चस्व और सम्मान होगा| हमारा पतन हुआ हमारी सद्गुण विकृतियों से| जिस तरह व्यक्ति के कर्म होते हैं वैसे ही समाज और राष्ट्र के भी सामूहिक कर्म और उनके फल होते हैं जिनका परिणाम अवश्य मिलता है| ये हमारे कर्म ही थे जिनके कारण हमारा पतन हुआ और हम इतनी पीड़ाओं और कष्टों में से गुजरे हैं और हैं| हम उनसे आध्यात्मिकता द्वारा ही मुक्त हो सकते हैं| इसके लिए हमें स्वयं महान बनना होगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१६
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