Monday, 30 December 2024

क्या असत्य और अन्धकार की शक्तियों का वर्चस्व -- हमारी आलोचना और निंदा से ही दूर हो जायेगा?

 (प्रश्न) क्या असत्य और अन्धकार की शक्तियों का वर्चस्व -- हमारी आलोचना और निंदा से ही दूर हो जायेगा?

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(उत्तर) मेरे विचार से नहीं। उनका परावर्तन आध्यात्मिक साधना द्वारा ही किया जा सकता है। सत्य ही परमात्मा है। सत्य से साक्षात्कार के पश्चात ही कुछ रचनात्मक कार्य हो सकते हैं, क्योंकि हम -- सृष्टि का भाग नहीं, सृष्टि -- हमारा भाग है।
हमें निज जीवन में शिवत्व को प्रकट करना पड़ेगा। शिव ही एकमात्र सत्य हैं। पृथकता का बोध ही माया का आवरण और विक्षेप है। .
वास्तविकता में यह सम्पूर्ण विश्व मेरा ही विस्तार, और मेरा ही संकल्प है। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, और जो कुछ भी दृष्टि से परे है, वह सब मैं हूँ। मैं सम्पूर्ण अस्तित्व और उसकी पूर्णता हूँ। मैं परमशिव हूँ। शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ !!
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मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु: चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||१||
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः, न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||२||
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ, मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः, चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||३|
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||४||
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:, पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||५||
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो, विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:, चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||६||
(इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं)
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"ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या" "शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि"॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०२२

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