आत्म-तत्व अर्थात परमात्मा की अनंतता से जुड़कर ही हम महान हैं .....
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'आचरण' क्या है? 'आ' अर्थात अनंत, उसकी ओर अग्रसर जो चरण हों, वे ही हमारा आचरण हैं| आत्मा यानि अनंतता से जुड़कर ही मनुष्य महान बनता है| पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है| उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट व प्रचंड रूप या सौम्यतम रूप भी धारण कर लेता है| वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है| जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है| सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब कुछ परमात्मा को अर्पित कर देते हैं, वे सब बाधाओं को पार करते हुए उस पार प्रभुकृपा से पहुँच ही जाते हैं|
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मेरे लिए तो सुषुम्ना का मार्ग ही स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ चैतन्य ही स्वर्ग का द्वार है| यह एक गुरुमुखी ज्ञान है जो सिद्ध सदगुरु और भगवान परमशिव की कृपा से ही समझ में आ सकता है| गुरु प्रदत्त विधि से हमें परमात्मा की अनंतता पर अजपा-जप और प्रणव ध्वनि यानि अनाहत नाद को निरंतर सुनते हुए कूटस्थ में सूक्ष्म भर्गज्योति: का ध्यान करते रहना चाहिए| ध्यान में सफलता के लिए भक्ति और अभीप्सा हो, फिर आसन मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान हो, जो सदगुरु ही प्रदान कर सकते हैं| साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी चाहिए|
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बाहर का विश्व हमारा ही प्रतिबिम्ब है| हमारा स्वरुप सुन्दर होगा तो प्रतिबिम्ब भी सुन्दर होगा| शृंगार हम स्वयं का करें, न कि दर्पण का| आत्मा हम स्वयं हैं, और यह संसार एक तरह के दर्पण में दिखाई देने वाला हमारा ही प्रतिबिम्ब है| दर्पण को कितना भी सजा लें, यदि हमारी आत्मा कलुषित है तो प्रतिबिंब भी कलुषित ही होगा | उज्जवल ही करना है तो बिम्ब को करें, फिर उसका प्रतिबिंब यह संसार भी अति सुन्दर होगा|
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तत्व रूप में शिव और विष्णु एक हैं| उनमें भेद हमारी अज्ञानता है| इस समय याद नहीं आ रहा है कि कहाँ पर तो मैनें पढ़ा है .....
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे| शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:||"
भगवान परमशिव ही आध्यात्मिक सूर्य हैं, यह मैं यहाँ अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८
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'आचरण' क्या है? 'आ' अर्थात अनंत, उसकी ओर अग्रसर जो चरण हों, वे ही हमारा आचरण हैं| आत्मा यानि अनंतता से जुड़कर ही मनुष्य महान बनता है| पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है| उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? पर वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट व प्रचंड रूप या सौम्यतम रूप भी धारण कर लेता है| वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है| जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है| सत्य का अनुसंधान सब के लिए संभव नहीं है, पर जो उसके लिए प्राणों की बाज़ी लगा कर सब कुछ परमात्मा को अर्पित कर देते हैं, वे सब बाधाओं को पार करते हुए उस पार प्रभुकृपा से पहुँच ही जाते हैं|
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मेरे लिए तो सुषुम्ना का मार्ग ही स्वर्ग का मार्ग है, और कूटस्थ चैतन्य ही स्वर्ग का द्वार है| यह एक गुरुमुखी ज्ञान है जो सिद्ध सदगुरु और भगवान परमशिव की कृपा से ही समझ में आ सकता है| गुरु प्रदत्त विधि से हमें परमात्मा की अनंतता पर अजपा-जप और प्रणव ध्वनि यानि अनाहत नाद को निरंतर सुनते हुए कूटस्थ में सूक्ष्म भर्गज्योति: का ध्यान करते रहना चाहिए| ध्यान में सफलता के लिए भक्ति और अभीप्सा हो, फिर आसन मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान हो, जो सदगुरु ही प्रदान कर सकते हैं| साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी चाहिए|
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बाहर का विश्व हमारा ही प्रतिबिम्ब है| हमारा स्वरुप सुन्दर होगा तो प्रतिबिम्ब भी सुन्दर होगा| शृंगार हम स्वयं का करें, न कि दर्पण का| आत्मा हम स्वयं हैं, और यह संसार एक तरह के दर्पण में दिखाई देने वाला हमारा ही प्रतिबिम्ब है| दर्पण को कितना भी सजा लें, यदि हमारी आत्मा कलुषित है तो प्रतिबिंब भी कलुषित ही होगा | उज्जवल ही करना है तो बिम्ब को करें, फिर उसका प्रतिबिंब यह संसार भी अति सुन्दर होगा|
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तत्व रूप में शिव और विष्णु एक हैं| उनमें भेद हमारी अज्ञानता है| इस समय याद नहीं आ रहा है कि कहाँ पर तो मैनें पढ़ा है .....
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे| शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:||"
भगवान परमशिव ही आध्यात्मिक सूर्य हैं, यह मैं यहाँ अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०१८
यह वसुंधरा न किसी की हुई है, और न किसी की होगी| अनंतकाल से न जाने कितने भूमिचोरों ने इस पर अपना अधिकार जताया, वे सब कालखंड में लुप्त हो गए, पर वसुंधरा वहीं की वहीं है| यह वसुंधरा न किसी की हुई है और न कभी होगी|
ReplyDeleteत होकर प्रभु के प्रवाह में स्वयं को विलीन कर दें.
ReplyDeleteमैं और मेरे प्रभु एक हैं.
मैं सर्वव्यापक अनंत परमशिव हूँ.
ॐ ॐ ॐ
पहले मैं भगवान का ध्यान करता था, पर अब तो भगवान ही सदा मेरा ध्यान रखते हैं.
ReplyDeleteवे ही मेरा अस्तित्व और प्राण हैं.
ॐ ॐ ॐ