Sunday 2 April 2017

सौलह दिन गणगौर के थे, तीज त्योंहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .....

सौलह दिन गणगौर के थे, तीज त्योंहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .....
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मारवाड़ ही नहीं, सारे राजस्थान की लोक-संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व "गणगौर" है| होली के दूसरे दिन यानी धुलंडी से प्रारम्भ होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक इस उत्सव की छटा हर तरफ अपना रंग बिखेरे रखती है| होलिका दहन की राख लाकर उसे देशी गाय के गोबर में मिलाकर इसकी सौलह पिंडियाँ शिव और पार्वती के प्रतीक "इसर" और "गणगौर" को दूब , पुष्प , कुमकुम , मेहंदी , काजल , आदि अर्पण कर पूजा की जाती है|
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कुँवारी कन्याएँ मनोवांछित वर के लिए और विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती होने के लिए गणगौर की पूजा करती हैं| विवाह के पहले वर्ष में नवविवाहित बेटियाँ गणगौर पूजन के लिए अपने मायके जाती हैं और वहाँ गणगौर की स्थापना कर पूरे सौलह दिन तक पूजन करती हैं| साथ देने के लिए सखी-सहेलियां और आस पड़ोस की महिलाएँ भी उनके साथ पूजन करती हैं|
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दूब और जल लेने के लिए माली के घर जाते समय बड़े उत्साह से वे गाती हैं ......
"बाड़ी वाला बाड़ी खोल, म्हे आयाँ छ दूब न , कुण जी री बेटी छो, कुण जी री भाण छो .... "
माली से दूब लेकर गीत गाती हुई लौटती हैं ..... "गोर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी, बायर उभी थाणे पूजन वाली ....."|
धुलंडी से शीतला अष्टमी तक राख की इन पिंडियों का विधिवत पूजन करने के पश्चात् शीतला अष्टमी को कुम्हार के घर से मिटटी लाकर गणगौर, इसर तथा अन्य मिटटी के प्रतीक बनाकर उनका नए वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है| सरकंडों पर गोटा लगाकर झूला सजाते हैं, और जौ के जंवारे उगाये जाते हैं|
बच्चियाँ गणगौर के जो गीत गाती हैं वे बड़े मधुर होते हैं| चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का विसर्जन कर देते हैं| गणगौर के पश्चात अब महीनों तक कोई तीज-त्यौहार नहीं है, इसीलिए एक कहावत पड़ी है कि "तीज त्योंहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर"|
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समस्त मातृशक्ति को शुभ कामनाएँ और नमन !
उद्भव स्थिति संहार कारिणी क्लेश हारिणी जगन्माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

  1. आज गणगौर का पर्व है जिस पर मैं समस्त मातृशक्ति को नमन करता हूँ| आप सब की मनोकामनाएँ माँ भगवती पूर्ण करे|
    कुँआरी कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति, नवविवाहिताएँ अपने सुखद व सफल वैवाहिक जीवन, और विवाहिताएँ अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए यह पर्व मनाती हैं|
    पूरे राजस्थान और उसके आसपास के क्षेत्रों में यह पर्व मनाया जाता है|
    समस्त मातृशक्ति को नमन करते हुए उनसे आशीर्वाद की मैं याचना करता हूँ|
    ॐ ॐ ॐ ||

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  2. तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर .......
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    होली के दूसरे दिन से ही नित्य अनेक घरों में मंगल गीत गाये जा रहे थे| सभी नवविवाहिताएँ अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए, और कुँआरी कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए गणगौर के रूप में पार्वती-शिव की उपासना कर रही थीं|
    आज उस अठारह दिन के उपासना पर्व का अवसान हो गया है|
    आज नवविवाहिता सौभाग्याकांक्षिणी महिलाओं ने और कन्याओं ने खूब उत्साह से गणगौर की पूजा की, और प्रतीकात्मक मिट्टी की मूर्तियों को तालाबों या बावड़ियों में प्रवाहित कर दिया|
    अब भयंकर गर्मी का मौसम आ जाएगा और कई दिनों तक तीज त्यौहार नहीं आयेंगे|
    उलाहना के रूप में इसीलिए यह कहावत पडी ...."तीज त्योहाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर"|

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