Sunday 2 April 2017

हृदय का प्रेम ही एकमात्र सहारा है, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है .....

हृदय का प्रेम ही एकमात्र सहारा है, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है .......
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यह प्रेम ही मेरी एकमात्र संपत्ति है, जिसके अतिरिक्त मेरे पास अन्य कुछ भी नहीं है| साधना की दृष्टि से सभी आध्यात्मिक साधकों के लिए वर्तमान समय कुछ अधिक ही कठिन है| पर साहस मत हारिये, यह काल अधिक फलदायी भी है|
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मेरा यह शरीर महाराज और उनका मनोबल अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं| चारों ओर विपरीत परिस्थितियाँ हैं| ऊर्जा, मनोबल, उत्साह और विवेक सभी निरंतर क्षीण हो रहे हैं, पर फिर भी परमात्मा की अपार कृपा है| जीवन तो शाश्वत है| किसी भी तरह का कोई सदेह या शंका नहीं है| सोच में, चिंतन में स्पष्टता है| जगन्माता हर जन्म में हर पल अपनी दृष्टी में सदा रखे, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहिए|
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किसी से कुछ भी नहीं चाहिए| व्यष्टि समष्टि से स्वतंत्र नहीं है| जो समष्टि में हो रहा है वह व्यष्टि को मिलेगा ही| यह स्वाभाविक और प्रकृति के नियमानुसार ही है| जब तक यह शरीर महाराज रुपी बाइसिकल चल रही है, तब तक और उसके पश्चात भी इस जीवन में परमात्मा की कृपा बरसती ही रहेगी| आगे भी यही क्रम रहेगा| दूसरी कोई और बाइसिकल मिल जायेगी| यात्रा तो चलती ही रहेगी|
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हे परमशिव, हे जगन्माता, आप मुझे कभी नहीं भूलें| सदा मेरे कूटस्थ चैतन्य में स्थित रहें| आप ही मेरे जीवन धन हो और मेरे प्राण हो| चाहे यह सृष्टि नष्ट हो जाए, पर मैं और आप सदा एक ही रहेंगे| मैं जैसा भी हूँ और जो कुछ भी हूँ, सदा आपका ही रहूँगा| ॐ ॐ ॐ ||

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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