Sunday 2 April 2017

आध्यात्मिक साधना में प्रथम लक्ष्य काम-वासना से मुक्त होना है .....

आध्यात्मिक साधना में प्रथम लक्ष्य काम-वासना से मुक्त होना है .....
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महाकाली की नियमित गहन साधना, सत्संग और सात्विक आचार-विचार से यह सिद्धि प्राप्त होती है|
जब तक मन में कामुकता का कण मात्र भी है तब तक किसी भी परिस्थिति में ज़रा सी भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती|
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जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम |
तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक धाम || === संत तुलसीदास ===
यह जीवन काम (वासना) और राम (परमात्मा) के मध्य की यात्रा है| जैसे सूर्य और रात्रि एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही राम और काम एक साथ नहीं रह सकते|
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जहाँ कामवासना है, वहाँ पराभक्ति, ब्रहम चिन्तन या ध्यान साधना की कोई संभावना ही नहीं है| वहाँ वैराग्य और मोक्ष की कामना बालू मिट्टी में से तेल निकालने के प्रयास जैसी ही है|
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कामुक व्यक्ति को न तो शान्ति मिल सकती है और न सन्तोष| वह कभी दृढ़ निश्चयी नहीं हो सकता| उसकी सारी साधनाएँ व्यर्थ जाती हैं| वह कभी आत्मानुभूति या परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता|
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खजुराहो के मंदिरों में कामरत मूर्तियाँ हैं, वे मंदिर के बाहर हैं, भीतर नहीं| इसका अर्थ है कि यदि तुम्हारे मन में अभी भी काम-वासना है तो मंदिर से बाहर ही रहो, भीतर जाने की आवश्यकता नहीं है| भीतर तभी जाओ जब इस वासना से मुक्त हो जाओ|

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महाकाली की साधना का उद्देश्य ही अवचेतन में छिपी कामुकता और अन्य सभी विकृतियों से मुक्त होना है| महाकाली उन सब का नाश कर देती है|
गीता प्रेस की दुर्गा सप्तशती की पुस्तक में दिए वैदिक देवी अथर्वर्शीर्ष का गहन अध्ययन करें| नवार्ण मन्त्र का नित्य नियमित जाप करें| फिर किसी ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त करें| मन में भक्ति और श्रद्धा होगी तो जगन्माता स्वयं मार्गदर्शन करेगी|

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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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