Wednesday 16 May 2018

समर्पण और ध्यान .....

समर्पण और ध्यान .....

प्रयासपूर्वक अपनी चेतना सदा आज्ञाचक्र पर या उस से ऊपर ही रखें. आज्ञाचक्र ही हमारा वास्तविक हृदय है. प्रभु के चरण कमल सहस्त्रार हैं. ब्रह्मरंध्र से ऊपर ब्रह्मांड की अनंतता हमारा वास्तविक अस्तित्व है, यह देह भी उसी का एक भाग है. हम यह देह नहीं हैं, यह देह हमारे अस्तित्व का एक छोटा सा भाग, और उस अनंतता को पाने का एक साधन मात्र है.

अपने पूर्ण प्रेम से परमात्मा की इस परम ज्योतिर्मय विराट अनंतता पर ध्यान करें. यही पूर्णता है, यही परमशिव है, यही परब्रह्म है. अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें समर्पित कर दें, कुछ भी बचा कर न रखें. अपना सम्पूर्ण अस्त्तित्व, अपना सब कुछ उन्हें समर्पित कर दें.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

2 comments:

  1. जो मान्यताएँ और जो विचार भगवान से डरने की शिक्षा देते हैं वे कुशिक्षा दे रहे हैं| मैं इस भय की अवधारणा का विरोध करता हूँ| भगवान तो परम प्रेम हैं, भय नहीं| भगवान से प्रेम किया जाता है, भय नहीं| भय का उदय पापों से होता है|

    भगवान के पास सब कुछ पर एक ही चीज नहीं है जो सिर्फ हम ही दे सकते हैं, और वह है हमारा परमप्रेम| अतः भगवान से डरिये नहीं, उन्हें प्रेम कीजिये| जो डरने की बात कह रहा है वह गलत इंसान है| ॐ ॐ ॐ ||

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  2. हमारी सारी खिन्नता, अवसाद व कुंठाओं का एकमात्र कारण हमारे ह्रदय के एक कोने में छिप कर बैठी "कामना" महारानी है. उन्हें विदा कीजिये.

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