Thursday 17 May 2018

हम अपने कर्मों के फल भुगतने को बाध्य हैं, या कोई विकल्प भी है .....

हम अपने कर्मों के फल भुगतने को बाध्य हैं, या कोई विकल्प भी है .....
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महाभारत में कहागया है .....
"यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम् | तथा पूर्वकृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ||"
अर्थात जैसे हज़ारो गौओं के मध्य में बछडा अपनी माता को ढूंढ लेता है वैसे मनुष्य के कर्मफल अपने कर्ता को पहिचान कर उसके पीछे पीछे चलते हैं|
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वैराग्य शतक में भर्तृहरि जी लिखते हैं ....
"अस्थिरं जीवितं लोके अस्थिरे धनयौवने | अस्थिराः पुत्रदाराश्र्च धर्मकीर्तिद्वयं स्थिरम् ||"
इसके भावार्थ का सार है कि सिर्फ धर्म और कीर्ति ही स्थिर हैं, जीवन, धन, यौवन, पुत्र, स्त्री आदि कुछ भी स्थिर नहीं हैं|
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प्रारब्ध कर्म तो भुगतने ही पड़ते हैं| निष्काम कर्मों से बंधन नहीं होता और आत्मसाक्षात्कार से हम संचित कर्मों से मुक्त हो जाते हैं|
Free choice एक ही है .... उपासना द्वारा आत्मज्ञान, अन्य कोई विकल्प नहीं है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मई २०१८

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