Thursday, 17 May 2018

मेरा स्वधर्म :---

मेरा स्वधर्म :---

मेरा स्वधर्म क्या है इसका पता मुझे वर्षों तक नहीं था| जब कुछ विवेक जागृत हुआ तब भगवान से प्रेम को ही मैं अपना स्वधर्म मानता था| जब इस देह की आयु लगभग ३३ वर्ष की हुई तब विचारों में परिवर्तन हुआ और ईश्वर के अनंत विराट ज्योतिर्मय प्रेमरूप पर ध्यान और सुषुम्ना में सूक्ष्म प्राणायाम को ही मैं स्वधर्म मानने लगा| अब वर्तमान में तो सूक्ष्म प्राणायाम भी स्वयं ईश्वर ही करने लगे हैं| कर्ता स्वयं ईश्वर हैं| मैं कुछ नहीं करता| अब तो प्रभु की चेतना में निरंतर प्रयासपूर्वक बने रहना ही मेरा स्वधर्म है|

प्रभु की चेतना में निरंतर बने रहना ....... ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ कार्य है जो वर्त्तमान परिस्थितियों में मैं कर सकता हूँ| यही मेरा स्वधर्म है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मई २०१८

2 comments:

  1. भगवान तो प्रियतम सम्बन्धी और सबसे प्यारे शाश्वत मित्र हैं| उन प्रियतम शाश्वत मित्र के साथ कैसी औपचारिकता ? वे निकटतम से भी अधिक निकट, और प्रियतम से भी अधिक प्रिय है| उनसे कोई औपचारिकता नहीं हो सकती| वे तो निरंतर हृदय में हैं, कभी एक क्षण के लिए भी साथ नहीं छोड़ते, उनसे इतना अधिक प्रेम हो जाए कि बस उनके अतिरिक्त अब अन्य कुछ रहे ही नहीं| ॐ ॐ ॐ ||

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  2. "कामना" और "सद्भावना" में अंतर बड़ा सूक्ष्म व भ्रामक है. कई बार हम कामनाओं को सद्भावना समझ, धोखा खा कर खिन्न हो जाते हैं.

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