Sunday 6 November 2016

भगवा वस्त्र ----

भगवा वस्त्र ----
भगवा वस्त्र अग्नि का प्रतीक ही नहीं साक्षात पवित्रतम अग्निवस्त्र है जिसे पहिन कर सन्यासी अपने अहंकार और वासनाओं कि आहुति अग्नि में निरंतर देता है|
भारत के जनमानस में भगवा वस्त्र का सम्मान इतना अधिक है कि वे किसी को भी भगवा वस्त्र में देखकर नतमस्तक हो जाते हैं|
पर दुर्भाग्यवश विदेशी जासूस और विधर्मी मत प्रचारक भी हिन्दुओं को ठगने के लिए भगवा वस्त्र पहिनते आए हैं|
भारत के साधू समाज को चाहिए कि वे हर किसी को भगवा वस्त्र न पहिनने दें| इसके लिए कोई शासकीय व्यवस्था हो जिसके अंतर्गत भगवा वस्त्र पहिनने का अधिकार मात्र उसी को हो जिसने विधिवत रूप से संन्यास दीक्षा ली हो|
हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू नाम धारी अधर्मियों ने "भगवा आतंकवाद" नाम के शब्द की भी रचना की|
कोई कुछ भी कहे पर भारत की अस्मिता हिंदुत्व ही है और भारत हिंदुत्व के कारण ही भारत है|
सनातन धर्म ही भारतवर्ष है और भारतवर्ष ही सनातन धर्म है|
ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. स्वामी असीमानन्द जी महाराज का दोष बस इतना ही था कि उनके प्रयासों से वनवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों की दुकानें अर्थात हिन्दुओं के धर्मांतरण का काला धंधा लगभग बंद हो गया था| यह तत्कालीन भारत की रोमन कैथोलिक महारानी को सहन नहीं हुआ जो भारत से हिंदुत्व को नष्ट ही कर देना चाहती थीं| उनके निर्देश से "हिन्दू भगवा आतंकवाद" नाम का शब्द गढ़ा गया और हिन्दू साधू साध्वियों को झूठे मामलों में फंसा कर गिफ्तार किया गया| जेल में उन सब को बहुत बुरी तरह से मारा पीटा गया और अति भयंकर यातनाएँ दी गईं|
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    स्वामी असीमानंद जी महाराज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की वनवासी कल्याण आश्रम संस्था से जुड़े हुए थे| इन्होने वर्षों तक पुरुलिया (बंगाल) में काम किया, फिर लगभग बीस वर्ष तक मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के वनवासी क्षेत्रों में काम किया| गुजरात के वनवासी क्षेत्र में उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाया और शबरी धाम स्थापित किया| उन्होने ईसाई बन चुके वनवासियों के लिए शुद्धिकरण का काम शुरू कर उन्हें बापस हिन्दू बनाना आरम्भ कर दिया इस से ईसाइयों द्वारा शासित तत्कालीन भारत सरकार तिलमिला उठी और झूठे मामलों में इन्हें फंसा दिया गया|
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    भगवान की कृपा से अब वे दोषमुक्त हैं| भगवान हिन्दुओं की रक्षा करें जिन्हें समाप्त करने का एक षडयंत्र निरंतर चल रहा है| स्वामी असीमानंद जी महाराज जैसे सभी संतों को नमन जो भारत में धर्म की रक्षा का कार्य निरंतर कर रहे हैं| स्वामी लक्षमणानन्द जी जैसे अनेक संतो की हत्याएँ सिर्फ इसीलिये हुईं कि वे धर्म की रक्षा कर रहे थे |
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    पुनश्चः : -- स्वामी असीमानामंद जी ने गुजरात के डाँग क्षेत्र के वनवासियों को बताया कि वे वनवासिनी शबरी माता के पुत्र हैं जिनकी झौंपडी में भगवान श्रीराम ने आकर झूठे बेर स्वीकार किये थे| अतः उनके आराध्य देव भगवान श्रीराम हैं, ईसा मसीह नहीं| ईसाई बन चुके उस क्षेत्र के सभी हिन्दुओं को वे बापस सनातन हिन्दू धर्म में लाये, अतः केंद्र की तत्कालीन हिन्दू विरोधी कांग्रेस सरकार उन की शत्रु बन गयी|

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