Friday, 25 August 2017

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो.....

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो
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जब भी भगवान की याद आये वह क्षण सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है|
जिस समय दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हो वह ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय है|

कोई कुछ भी कहे, कितना भी बुरा-भला कहे, चाहे कितने भी अच्छे-बुरे सुझाव दे, उस पर ध्यान मत दो | ध्यान दो सिर्फ अपने हृदयस्थ परमात्मा से मिल रही प्रेरणा पर | संसार क्या सोचता है, क्या कहता है, इसका कोई महत्त्व नहीं है | महत्त्व सिर्फ एक ही बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं |

अपने लक्ष्य परमात्मा को सदा सामने रखो और इधर-उधर किधर भी ध्यान मत दो |


ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||



१८ अगस्त २०१७

2 comments:

  1. सर्वत्र परब्रह्म परमात्मतत्त्व ही विद्यमान है |
    जो उस आत्मतत्व में रत हैं उन सब को मैं प्रणाम करता हूँ |

    विद्यारण्य स्वामी ने पञ्चदशी में लिखा है कि ईश्वर की सृष्टि जीव को बंधन में नहीं डालती, जीव की स्वयं की सृष्टि ही बंधन कारक है | उन्होंने ईश्वर की सृष्टि एक स्त्री का उदाहरण दिया है जिसे एक कामी पुरुष, एक कुता और एक योगी देख रहे हैं | कुत्ता सोचता है की यदि यह मर जाए तो मैं इसे खा लूँ | कामी पुरुष सोचता है कि यह मुझे मिल जाए तो मेरी कामवासना शांत हो | योगी उस हाड-मांस के पुतले को निरपेक्ष भाव से देखता है | यहाँ कामी पुरुष बंधन में बंध गया, योगी बंधन से मुक्त ही रहा |

    निरंतर गुरु प्रदत्त साधना में रत रहें | वही रक्षा करेगी |

    शिवोऽहम् शिवोऽहम् शिवोऽहम् | अहं ब्रह्मास्मि | ॐ ॐ ॐ ||

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  2. जीवन में आ रही सभी बाधाओं, कठिनाइयों, पीड़ाओं, दुःखों, कष्टों, अभिशापों और सभी प्रकार की विपरीतताओं का स्वागत है| ये सब भगवान की कृपा हैं जो हमें उनकी याद दिलाने के लिए निरंतर आती हैं| इनके बिना सृष्टिकर्ता को कौन याद करेगा ?
    समर्पण में पूर्णता हो व कोई कामना न हो| भगवान योग-क्षेम का वहन भी करेंगे और निराश्रय की रक्षा भी करेंगे| ॐ ॐ ॐ ||

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