Friday 25 August 2017

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----

भवसागर को गोते लगाए बिना पार करें :----
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श्रुति भगवती कहती हैं .....
"प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते | अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ||
–मुण्डकोपनिषद्,२/२/४.
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प्रणव रूपी धनुष पर आत्मा रूपी बाण चढ़ाकर ब्रह्म रूपी लक्ष्य को बेधना है | बाण सीधा अपने लक्ष्य को बेधता है, इधर उधर कहीं भी नहीं जाता | वैसे ही अपने लक्ष्य परमात्मा की ओर ही पूर्ण तन्मयता से अग्रसर होना है, इधर-उधर कहीं भी नहीं देखना है |
See nothing, look at nothing but your goal ever shining before you.
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कठोपनिषद में भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है, जिसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार होता है|
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श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


२३ अगस्त २०१७

1 comment:

  1. मैं ध्यान साधना की बातें इसलिए करता हूँ क्योंकि यह मेरा स्वभाविक रूप से सर्वाधिक प्रिय मार्ग है, अन्य किसी मार्ग में मेरी कोई रूचि नहीं है| इस मार्ग में नियमित उपासना आवश्यक है क्योंकि नियमित उपासना से ही चित्त शुद्ध होता है और बिना चित्त शुद्ध किये परमात्मा को पाने की अभीप्सा और तड़फ उत्पन्न नहीं होती| अतः अपना साधन-भजन नहीं छोड़ें और साधना के मार्ग पर अविचलित रहें|

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