Friday, 25 August 2017

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......

जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए ......
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जिज्ञासु होकर रुकना नहीं चाहिए , प्रयत्न पूर्वक साधना करते रहना चाहिए | मन लगे या न लगे अपना साधन नहीं छोड़ना चाहिए | अगर दिन में तीन घंटे नाम जप या ध्यान करना है तो करना ही है | उसे छोड़ने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए | मन नहीं लगे तो भी बैठे रहो, पर साधन छूटना नहीं चाहिए | मार्ग में बाधाएँ तो बहुत आती हैं, असुर ही नहीं, देवता भी नहीं चाहते कि किसी साधक की साधना सफल हो, वे भी मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करते रहते हैं | इस मार्ग में सिर्फ सद् गुरु की कृपा ही काम आती है | गुरु चूंकि परमात्मा के साथ एक हैं, और उनसे बड़ा हितकारी अन्य कोई नहीं है, अतः उन्हीं की कृपा साधक की रक्षा करती है |
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पुण्य से उत्तम गति प्राप्त होती है पर जन्म-मरण से छुटकारा नहीं मिलता | जन्म-मरण का कारण कामनाएँ हैं जिनसे मुक्ति गहन ध्यान साधना से ही मिलती है | मेरी दृष्टी में अन्य कोई उपाय नहीं है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है .....

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिः |
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||
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सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा पाप नष्ट होते हैं | इनकी विधि सिद्ध गुरु ही शिष्य को बता सकता है | ये सूक्ष्म प्राणायाम ही प्रत्याहार कहलाते हैं | सदगुरु की कृपा से कहीं कोई अन्धकार नहीं रहता | गुरु सेवा का अर्थ है गुरु प्रदत्त साधना का अनवरत नियमित अभ्यास | जिन परमात्मा का ध्यान करना है, उनका आभास भी गुरु कृपा से ही होता है |
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
१८ अगस्त २०१७

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