Monday, 2 July 2018

"आत्मज्ञान" ही परम धर्म है.....

"आत्मज्ञान" ही परम धर्म है.....
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समाज में व्याप्त विकृतियों का कारण हमारी गलत मनोवृति, गलत विचार व गलत भावनाएँ हैं | दोष कहीं बाहर नहीं है, हमारे भीतर ही है| इनसे बचने के लिए आवश्यक है .... परमात्मा का ध्यान, ध्यान और ध्यान| सबसे बड़ी सेवा जो हम अपने स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व की कर सकते हैं, और सबसे बड़ा उपहार जो हम किसी को दे सकते हैं, वह है ..... "आत्मसाक्षात्कार"|

निरंतर प्रभु की चेतना में स्थिर रहें, यह बोध रखें कि हमारी आभा और स्पंदन पूरी सृष्टि और सभी प्राणियों की सामूहिक चेतना में व्याप्त हैं, और सब का कल्याण कर रहे हैं|

प्रभु की सर्वव्यापकता हमारी सर्वव्यापकता है, सभी प्राणियों और सृष्टि के साथ हम एक हैं| हमारा सम्पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम पूरी समष्टि का कल्याण कर रहा है| हम और हमारे प्रभु एक हैं|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ जुलाई २०१८

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