Monday 2 July 2018

अन्धकार और प्रकाश कभी एक साथ नहीं रह सकते .....

अन्धकार और प्रकाश कभी एक साथ नहीं रह सकते .....
.
जहाँ काम-वासना है वहाँ ब्रह्मचिंतन या ध्यान साधना की कोई संभावना नहीं है| जो मत काम वासनाओं की तृप्ति को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं वे अन्धकार और असत्य की शक्तियाँ हैं| उनका अनुसरण घोर अंधकारमय नारकीय लोकों में ले जाता है| ऐसे असुर लोग नरपिशाच और इस पृथ्वी पर कलंक हैं|
.
"जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम|
तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक ठाम||"
जहाँ काम-वासना है वहाँ "राम" नहीं हैं, जहाँ "राम" हैं वहाँ काम-वासना नहीं हो सकती| सूर्य और रात्री एक साथ नहीं रह सकते|
.
जो मैं लिख रहा हूँ वह आध्यात्मिक साधना के अपने निज अनुभव से लिख रहा हूँ, कोई हवा में तीर नहीं मार रहा हूँ| मनुष्य की सूक्ष्म देह में सुषुम्ना नाड़ी है जिसमें प्राण शक्ति ऊपर-नीचे प्रवाहित होती रहती है| यह प्राण तत्व ही हमें जीवित रखता है| इस प्राण तत्व की अनुभूति हमें ध्यान साधना में होती है|
.
जब काम वासना जागृत होती है तब यह यह प्राण प्रवाह अधोमुखी होकर नीचे के तीन चक्रों तक ही सीमित हो जाता है, और सारी आध्यात्मिक प्रगति रुक जाती है| परमात्मा के प्रेम की अनुभूतियाँ हृदय से ऊपर के चक्रों में ही होती है, जिनमें विचरण कामवासना से ऊपर उठ कर ही हो सकता है|
.
और आगे की बातों की यहाँ कोई सार्थकता नहीं है| यहाँ मेरा उद्देश्य यही बताने का है कि कामुकता से ऊपर उठकर ही मनुष्य परमात्मा की ओर अग्रसर हो सकता है| कामुकता बढाने वाली या कामवासना की तृप्ति को ही लक्ष्य मानने वाली विचारधाराएँ असत्य और अन्धकार (Falsehood and Darkness) की पैशाचिक शक्तियाँ हैं| जो इनका समर्थन करते हैं वे महा असुर हैं और नर्कगामी हैं|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ जुलाई २०१८

1 comment:

  1. बौद्धिक रूप से कुछ भी समझने की एक सीमा होती है| उससे परे की बात जो समझ में नहीं आये वह भगवान पर छोड़ देनी चाहिए| जितना जो भी समझ में आ गया वह पर्याप्त है|

    पर अपनी नियमित साधना/उपासना को किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ना चाहिए| नियमित ध्यान नहीं करने से भगवान को पाने की अभीप्सा ही समाप्त हो जाती है| कुछ समझ में आये या नहीं आये उसका कोई महत्त्व नहीं है, महत्त्व इसी बात का है कि भगवान पर कितने समय तक ध्यान किया|

    ॐ ॐ ॐ !!

    ReplyDelete