Saturday, 31 March 2018

हिन्दू स्वयं को बहुसंख्यक मानने के झूठे भ्रम में न रहें, वास्तव में वे अल्पसंख्यक ही हैं .....

हिन्दू स्वयं को बहुसंख्यक मानने के झूठे भ्रम में न रहें, वास्तव में वे अल्पसंख्यक ही हैं .....
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वर्त्तमान सांविधानिक व्यवस्था में बहुसंख्यक होने से हानि ही हानि है और अल्पसंख्यक होने से लाभ ही लाभ| जो घोषित अल्पसंख्यक हैं वे अपनी शिक्षण संस्थाओं में अपनी धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं, और अपने ही वर्ग के शत प्रतिशत विद्यार्थियों को प्रवेश दे सकते हैं, उन्हें मान्यता भी प्राप्त है|

गुरुकुलों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त नहीं है जब कि मदरसों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त है| ईसाई शिक्षण संस्थानों में सब को ईसाई धर्म की शिक्षा दी जा सकती है पर हिन्दू अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते|

वर्षों पूर्व रामकृष्ण मिशन और आर्यसमाज ने स्वयं को इसीलिये अल्पसंख्यक घोषित कर के सरकारी मान्यता की माँग की थी जो उन्हें नहीं दी गयी|

यह अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा किसी शातिर और धूर्त दिमाग की उपज थी जिस का उद्देश्य शनैः शनैः हिन्दू धर्म को नष्ट करना था| हिन्दू मुर्ख बना ही दिए गए| हिन्दू इसी झूठी भ्रान्ति में जीते रहे कि वे बहुसंख्यक हैं| वास्तव में हिन्दू अल्पसंख्यक ही हैं|

अल्पसंख्यक कहलाने से हिन्दुओं को कोई हानि नहीं है| मेरे विचार से हिन्दू धर्म के हर सम्प्रदाय को स्वयं को अल्पसंख्यक घोषित करवाने की माँग करनी चाहिए ताकि कम से कम वे अपनी शिक्षण संस्थाओं में हिन्दू धर्म की शिक्षा तो दे सकें|

वर्षों पूर्व भारत में जब "हम दो हमारे दो" का नारा लगाया गया और सरकारी नौकरों पर दो बच्चे ही पैदा करने की पाबंदी लागू की गयी थी तो यह सिर्फ हिन्दुओं पर ही थी| बाकी सब को चाहे जितने बच्चे पैदा करने की छूट थी|

अतः हिन्दू अल्पसंख्यक ही हैं, यह वास्तविकता उन्हें स्वीकार कर लेनी चाहिए और स्वयं को अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली सारी सुविधाओं की माँग करनी चाहिए| धन्यवाद !

३० मार्च २०१८

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