प्रातः उठते ही अपने दिन का आरंभ भगवान के ध्यान से करें। कमर को सीधी रखते हुये एक कंबल के आसन पर सुख से पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के स्थिर बैठें। आँखों को आधी बंद रखते हुए अपने दृष्टिपथ को भ्रूमध्य के माध्यम से अनंत की ओर करें। इस देह को भूल कर, जहाँ तक कल्पना जाती है, वहाँ तक एक प्रेममय अनंत कूटस्थ ज्योतिर्मय विस्तार की कल्पना करते हुए अजपा-जप करें। कुछ दिनों में वह कूटस्थ ज्योति खुली आँखों से भी दिखाई देने लगेगी। वह कूटस्थ ज्योति और उसके साथ सुनाई दे रही ध्वनि, व आनंद की अनुभूतियाँ - ईश्वर का बोध यानि स्वयं ईश्वर हैं। उसी में स्वयं का समर्पण करें और उसी कूटस्थ-चैतन्य में रहें। इसकी परिणिति - गीता में बताई हुई ब्राह्मी-स्थिति है। यदि कोई कठिनाई है तो भगवान श्रीराम, या श्रीकृष्ण, या शिव, या विष्णु की साकार कल्पना करें, और उसी में स्वयं को समर्पित करें। उन्हीं को जीवन का केंद्र-बिन्दु यानि कर्ता बनायें, और हर समय अपनी स्मृति में रखें।
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यदि स्वयं का आचरण और विचार सात्विक होंगे, तभी कोई भी आध्यात्मिक साधना सफल होती है, अन्यथा कभी नहीं। जिन का आचरण और विचार तामसिक है, उनकी रक्षा तो भगवान के सिवाय अन्य कोई नहीं कर सकता। वे घर में शांति से अपना पूजा-पाठ और आराधना करें, व भगवान से अपने कल्याण की प्रार्थना करें।
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मनुष्य के अनियंत्रित अति प्रबल लोभ, अहंकार और कामुकता ने विश्व की अनेकानेक महान सभ्यताओं को नष्ट किया है, अगणित हजारों करोड़ मनुष्यों की हत्या और बलात्कार किए हैं, और अगणित हजारों करोड़ मनुष्यों को अपना गुलाम बनाया है। इस विकृति ने ही मनुष्य को नराधम असुर बना दिया है। कहते हैं कि कोई जन्नत या heaven नाम की एक बहुत ही काल्पनिक और घटिया जगह है, जहाँ शराब की नदियाँ बहती हैं, और हर तरह की सुंदर स्त्रियाँ हर समय उपलब्ध रहती हैं। वहाँ पुरुष का एक ही काम है -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन, अनंत काल के लिए -- संभोग करने की एक मशीन बन जाना। जैसे किसी बिजली की मशीन के स्विच को ऑन करते ही मशीन चल पड़ती है, वैसे ही स्वयं को एक मशीन मात्र बना देना - जीवन की उच्चतम उपलब्धि और लक्ष्य बताया जाता है। इस काल्पनिक जन्नत या स्वर्ग की अधम कामना ने इस पृथ्वी पर अत्याचार ही अत्याचार किये हैं। इसी को प्राप्त करने के लिए मनुष्य स्वयं से असहमत दूसरों से घृणा, दुराचार, और उनकी हत्या करता रहता है।
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हमारे विचार और हमारा आचरण पवित्र और परोपकारी होंगे तभी हम पर भगवान की कृपा होगी। अन्यथा लगे रहें, इस मायावी विश्व के कटु अनुभव स्वयम् को परमात्मा की ओर उन्मुख होने को धीरे-धीरे बाध्य कर देंगे।
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आप सब को नमन और मंगलमय अनंत शुभ कामनाएँ। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२ अक्तूबर २०२१
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