Friday, 8 October 2021

सत्य को जानने/समझने की प्रबल जिज्ञासा और निज जीवन में उसे अवतरित करने का अदम्य साहस, मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है --

सत्य को जानने/समझने की प्रबल जिज्ञासा और निज जीवन में उसे अवतरित करने का अदम्य साहस, मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है --

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हम स्वयं के प्रति सच्चे रहें, अपने आप को धोखा न दें। स्वयं को धोखा देना - भगवान को धोखा देना है। किसी भी तरह का ढोंग और दिखावा न करें। धन्य हैं वे माता-पिता जो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं। बिना पैंदे के लोटे की तरह हम न बनें, जिसे कोई भी चाहे जैसी दिशा में मोड़ दे। हम महासागर में खड़ी उन दृढ़, अडिग और शक्तिशाली चट्टानों की तरह बनें, जिन पर प्रचंड लहरें बड़े वेग से टक्कर मारती हैं, लेकिन चट्टानों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हम परशु की तरह तीक्ष्ण बनें, जिस पर गिरने वाला कट जाये, और जिस पर परशु गिरे वह भी कट जाये। हमारे में स्वर्ण की सी पवित्रता हो, जिसे कोई अपवित्र न कर सके।
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हमारे में आत्म-हीनता की कोई भावना न हो। झूठे आदर्शों और झूठे नारों, व भ्रामक विचारों से दूर रहें। सत्य ही परमात्मा है, और सत्य ही सबसे बड़ा गुण है। दूसरों के कन्धों पर रख कर बन्दूक न चलाएँ। अपनी कमी को स्वयं दूर करें, दूसरों को दोष न दें। हमारा लक्ष्य परमात्मा है, हमें अपनी यात्रा अकेले ही पूरी करनी होगी। कोई अन्य तो हो ही नहीं सकता। अनवरत अकेले ही चलते रहें। जब एक बार यह निश्चय कर लिया है कि हमें कहाँ जाना है, तब यह न सोचें कि हमारे साथ कोई और भी चल रहा है या नहीं। हम अनवरत चलते रहें।
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भगवान की सृष्टि में कोई दोष नहीं है। सारे दोष हमारी ही सृष्टि में हैं, जिन्हें सिर्फ हम ही दूर कर सकते हैं। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
१ अक्तूबर २०२१

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