Friday, 8 October 2021

सिर्फ दैवीय शक्तियों की कृपा से ही हम बचे हुये हैं ---

 

सिर्फ दैवीय शक्तियों की कृपा से ही हम बचे हुये हैं ---
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विचारधाराओं के संघर्ष में इस समय ईसाईयत पर इस्लाम विजयी हो रहा है। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। इसका कारण है कि इस्लाम में अपने मजहब के प्रति सांसारिक आत्म-त्याग (self giving) की भावना है, और किसी भी प्रकार के हानि-लाभ का calculation नहीं है। यह बात ईसाईयत में नहीं है। आप यह पूरे विश्व में धटित होते हुए देख सकते हैं।
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हिंदुओं की शक्ति सिर्फ आध्यात्म में है| आध्यात्म के बिना हिंदुओं का कोई भविष्य नहीं है। Self giving की भावना अब हिंदुओं में नहीं के बराबर है। हर चीज में अब हम लोग भी लाभ-हानि का calculation करने लगे हैं। धर्म और राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना लगभग नगण्य है, जिसके बिना हमारा भविष्य उज्ज्वल नहीं है। यदि यही हाल रहा तो आसुरी शाक्तियाँ हमें नष्ट कर देंगी। एक परिवर्तन लाना होगा जिसका आरंभ तो स्वयं से ही करना होगा।
४ अक्तूबर २०२१

1 comment:

  1. एक बात विचारणीय है। कट्टरता मैं उसे कहता हूँ जो कट कर ही टरे। मुसलमानों में जो कट्टरता है, उतनी किसी अन्य मज़हब में नहीं है। ये न तो किसी की बात सुनते हैं और न किसी तर्क को मानते हैं। जैसा उनको कह दिया जाता है, वैसा ही कहते और करते हैं। अपने मज़हब के लिए हर समय मरने-मारने को तैयार रहते हैं। यूरोप में ये शरणार्थी होकर गए, और पूरे पश्चिमी यूरोप का इन्होने सत्यानाश कर दिया, लेकिन पूरे पश्चिम के ईसाई इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहे हैं।
    पूरे विश्व में ईसाई और मुसलमान एक-दूसरे के शत्रु हैं, लेकिन भारत में हिंदुओं के विरुद्ध ईसाई और मुसलमान दोनों एक हैं।
    पूर्व युगोस्लाविया के विखंडन के पश्चात बने सर्बिया ने मुसलमानों का संहार करना आरंभ किया तो ईसाई देशों के NATO संगठन ने ही सर्बिया पर भयानक बमबारी कर के उसे पाषाण युग में पहुंचा दिया। पूर्वकाल में ईसाई और मुसलमानों में खूब धर्मयुद्ध हुए हैं, लेकिन वर्तमान में ईसाईयत - इस्लाम से दबी हुई है।

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