भगवान ही एकमात्र सत्य हैं। जो परमात्मा प्रकाश में हैं, वे ही अंधकार में हैं। सुख-दुःख, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म -- सब उन्हीं के मन की कल्पना है। प्रकाश का अभाव ही अंधकार है, और अंधकार का अभाव ही प्रकाश। इस प्रकाश और अंधकार के खेल से ही यह सृष्टि चल रही है। प्रकाश का महत्व - अंधकार से है। अंधकार में ही तारे चमकते हैं। मनुष्य विवश है, परिस्थितियों का दास है। सब कुछ प्रकृति के वश में है; मनुष्य का लोभ और अहंकार ही बंधन है। लोभ और अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही स्वतंत्र, धार्मिक और जीवनमुक्त है।
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पुनश्च: -- भगवान के अलावा, कोई किसी के काम नहीं आता। दुःख-सुख में सिर्फ भगवान ही काम आते हैं। वे ही प्रकाश हैं, और वे ही अंधकार हैं।
स्वयं में व्यक्त देवत्व की अभिव्यक्ति ही काम आती है, किसी अन्य की नहीं।
२६ सितंबर २०२१
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