Monday 12 September 2016

केवल जीव ही नहीं, सारा संसार ही ब्रह्मरूप है, सारा जगत् ब्रह्म ही है, वस्तुतः मैं वह स्वयं हूँ ..

केवल जीव ही नहीं, सारा संसार ही ब्रह्मरूप है, सारा जगत् ब्रह्म ही है, वस्तुतः मैं वह स्वयं हूँ .....

परमात्मा ही सर्वस्व है| जब हम किसी चीज की कामना करते हैं तब परमात्मा उस कामना के रूप में आ जाते हैं, पर स्वयं का बोध नहीं कराते| हम जब तक कामनाओं पर विजय नहीं पाते तब तक परमात्मा का बोध नहीं कर सकते|

आत्मा को प्रेम का विषय बना कर ही कामनाओं को जीत सकते हैं| काम, क्रोध ही हमारे वास्तविक शत्रु हैं, और राग, द्वेष व मोह ही वास्तविक बाधाएँ| अन्यथा परमात्मा तो नित्य प्राप्त हैं| वे तो हमारा स्वरूप हैं| जीव ही नहीं, समस्त सृष्टि ही परमात्मा है, मैं वह स्वयं हूँ| हर ओर परमात्मा ही परमात्मा है| उस अज्ञात परमात्मा को अपने से एक समझते हुए ही उससे पूर्ण प्रेम करना होगा| अन्य कोई मार्ग नहीं है|
ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ ||

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