Monday 12 September 2016

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....
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एक बहुत ऊंचे और विराट पर्वत की तलहटी में बसे एक गाँव के लोगों में यह जानने की प्रबल जिज्ञासा थी की पर्वत के उस पार क्या है| बहुत सारे किस्से कहानियाँ प्रचलित थे| कई पुस्तकें लिखी गयी थीं यही बताने को कि पर्वत के उस पार क्या है| बहुत सारे लोग थे जो बताते थे कि पर्वत के उस पार क्या है| पर उनमें से किसी ने भी प्रत्यक्ष देखा नहीं था कि उस पार क्या है| सबकी अपनी मान्यताएं थीं|
कुछ लोगों की मान्यता थी कि वे जो कहते हैं वही सही है, और बाकी सब गलत| कुछ लोगों ने घोषणा कर दी कि जो भी उनकी बात को नहीं मानेगा उसे दंडित किया जाएगा, उसकी ह्त्या भी कर दी जायेगी|
इस सब के बाद भी लोगों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई यह जानने को की पर्वत के उस पार क्या है|

एक दिन एक साहसी युवक ने हिम्मत जुटाई और पर्वत पर चढ़ गया| पर्वत पर चढ़ कर और स्वयं देखकर अपने निजी अनुभव से ही उसे पता चला कि पर्वत के उस पार क्या है| उसने पाया कि नीचे की सब प्रचलित बातें अर्थहीन हैं| पर उसने जो अनुभूत किया वह उसका निजी अनुभव था जो उसी के काम का था| अन्य कोई उसकी बात को मान भी नहीं सकता था| उसने नीचे आकर घोषणा कर दी की जिसे यह जानना है कि पर्वत के उस पार क्या है उसे स्वयं को पर्वत पर चढ़कर देखना होगा| किसी ने उसकी बात मानी किसी ने नहीं| कुछ ने उसे द्रोही घोषित कर दिया| पर फिर भी लोगों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई|
अपना संसार ही वह गाँव है, और अज्ञान ही वह पर्वत है| उस अज्ञान रुपी पर्वत से ऊपर जाकर ही पता चल सकता है की सत्य क्या है| यह मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा है यह जानने की कि सत्य क्या है| दूसरों के उत्तर इस जिज्ञासा को शांत नहीं कर सकते| एक सुखी व्यक्ति ही यह जान सकता है कि सुख क्या है| एक पीड़ित व्यक्ति यह जानना चाहे कि आनंद क्या है तो उसे स्वयं को आनंदित होना होगा|
आप मुझसे पूछें की चन्द्रमा कहाँ है तो मैं अपनी अंगुली से संकेत कर के बता दूंगा| एक बार चन्द्रमा को देखने के पश्चात मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं रहता|
आप कहीं अनजान जगह जा रहे हैं तो आप अपने साथ एक पथ प्रदर्शक पुस्तिका रखेंगे| पर एक बार गंतव्य स्थान दिखाई पड़ जाने पर उस पुस्तिका का कोई महत्व नहीं रहता और न ही दूसरों के बताये हुए दिशा निर्देशों का|
अपनी जिज्ञासाओं को तृप्त करने के लिए स्वयं को प्रयास और खोज करनी होगी| अन्य कोई आपकी जिज्ञासाओं को शांत नहीं कर सकता|
बस यही मेरे भाव हैं जो मैं व्यक्त करना चाहता था| परम धन्यवाद|
ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
13 सितम्बर 2013

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