Monday, 12 September 2016

दीर्घसूत्रता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है .....

दीर्घसूत्रता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है .....
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जो काम करना है उसे अब और इसी समय करो| जो कल करना है उसे आज करो, और जो आज करना है उसे अभी करो| काम को आगे टालने की प्रवृति को दीर्घसूत्रता कहते हैं| यह मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है| प्रमाद यानि आलस्य ही मृत्यु है|
रावण के मन में तीन शुभ संकल्प थे.....
(१) उसकी पहली इच्छा थी कि वह स्वर्ग का मार्ग एक लम्बी सीढ़ी की तरह इतना आसान बना देगा कि पापी मनुष्य भी वहाँ पहुँच सकें|
(२) उसको औरतों को भोजन बनाते समय अग्नि से उठने वाले धुएँ से होने वाली असुविधा से बड़ी पीड़ा थी| उसकी दूसरी इच्छा थी अग्नि को धुआं रहित करने की|
(३) उसकी तीसरी इच्छा थी सोने में सुगंध भर कर उसे सुगन्धित पदार्थ बनाने की| वह चाहता था की स्त्रियाँ जब स्वर्णाभूषण पहिनें तब उनकी देह महक उठे और उन्हें अन्य किसी शृंगार की आवश्यकता न पड़े|

रावण इन सब कामों को करने में समर्थ था| पर आलस्यवश आज करेंगे, कल करेंगे कहकर इन शुभ कामों को टालता रहां| फलस्वरूप उसे बहुत देरी हो गयी| उसके साथ भगवान राम का युद्ध छिड़ गया और उसकी मृत्यु हो गयी| उसके पश्चात हज़ारो वर्ष व्यतीत हो गए पर उसके छोड़े हुए शुभ संकल्प को आज तक कोई पूरा नहीं कर पाया है| हाँ अशुभ कार्य को करने में आलस्य और दीर्घसूत्रता लाभदायक है| अगर सीताहरण में वह आलस्य और प्रमाद करता तो न तो वह मरता और न ही उसका कुल नष्ट होता|
शुभ कर्म जितनी शीघ्र कर लिए जाएँ उतना ही अच्छा है और अशुभ कार्यों में जितनी देरी की जाए या उन्हें किया ही न जाये तो और भी अच्व्छा है| अतः उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में तुरंत जुट जाओ|
हमारा सब से पहिला और पवित्रतम कार्य है परमात्मा को प्राप्त होना| बाकी अन्य हर चीज प्रतीक्षा कर सकती है पर ईश्वर की खोज नहीं| अपना दिवस ईश्वर के ध्यान से आरम्भ करो| पूरे दिन उसकी स्मृति बनाए रखो, और जब भी भूल जाओ तब याद आते ही फिर उसकी स्मृति में रहने का प्रयत्न करते रहो| रात्री को शयन से पूर्व परमात्मा का गहनतम ध्यान कर जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ|
अपने ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जला दो परमात्मा को प्राप्त करने की| हमारी अभीप्सा इतनी तीब्र हो की उसके समक्ष अन्य कोई कामना टिक ही न सके| उसके प्रेम को इतना गहन बना दो कि अन्य कोई विचार ही न रहे|
माया की शक्तियों से बचना अति कठिन है| भगवान से गहन प्रार्थना और सत्संग साधक की सदा रक्षा करते हैं| भगवान का ध्यान भी सत्संग ही है जिसमें आप भगवान के साथ रहते है| पर ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रिय और परम भक्त महात्माओं का लौकिक सत्संग भी अति आवश्यक है, जो दुर्लभ है|
शुभ कामनाएँ|
ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!

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