क्या हम प्रकृति के रहस्यों को समझ पाने मे समर्थ हैं ..... ?
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सृष्टि का हर घटनाक्रम सुनियोजित और विवेकपूर्ण है| हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण है| हर कार्य पूर्णता से हो रहा है| कहीं भी कोई कमी या अपूर्णता नहीं है| बिना किसी अपेक्षा के प्रकृति अपना कार्य पूर्णता से कर रही है|
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अपूर्णता है तो सिर्फ हमारे स्वयं में, स्वयं के अस्तित्व में|
क्या हम जान सकते हैं कि ऐसा क्यों है? क्या जन्म और मृत्यु, व सुख और दुःख से परे भी कोई अस्तित्व या जीवन है? उसका बोध हमें क्यों नहीं होता? यदि हम शाश्वत हैं तो हमें उसका बोध क्यों नहीं है?
हम हैं कौन? क्या हम इसे जान सकते हैं?
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यह बात हर कोई नहीं समझ सकता| पर जो बात मुझे समझ में आ रही है, जिसका मुझे आभास हो रहा है, उसे व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ ......
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(१) पूर्णता का ध्यान कर, पूर्णता को समर्पित होकर ही हम पूर्ण हो सकते हैं|
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(२) जिस परमब्रह्म परमशिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ उसी को समर्पित होकर हम अमर हो सकते हैं|
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(३) जिसे हम परमब्रह्म, या परमशिव कहते हैं, वह ही पूर्णता है जिसको उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है| जब तक हम उसमें समर्पित नहीं हो जायेंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी|
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४) उसका एकमात्र मार्ग है --- परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की एक गहन अभीप्सा| अन्य कोई मार्ग नहीं है| जब इस मार्ग पर चलते हैं तो परमप्रेमवश प्रभु निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
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(५) कुछ बनना और कुछ होना ------ ये दोनों अलग अलग अवस्थाएं है, जो कभी एक नहीं हो सकतीं|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन और आप सब को अहैतुकी प्रेम | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते |पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||
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सृष्टि का हर घटनाक्रम सुनियोजित और विवेकपूर्ण है| हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण है| हर कार्य पूर्णता से हो रहा है| कहीं भी कोई कमी या अपूर्णता नहीं है| बिना किसी अपेक्षा के प्रकृति अपना कार्य पूर्णता से कर रही है|
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अपूर्णता है तो सिर्फ हमारे स्वयं में, स्वयं के अस्तित्व में|
क्या हम जान सकते हैं कि ऐसा क्यों है? क्या जन्म और मृत्यु, व सुख और दुःख से परे भी कोई अस्तित्व या जीवन है? उसका बोध हमें क्यों नहीं होता? यदि हम शाश्वत हैं तो हमें उसका बोध क्यों नहीं है?
हम हैं कौन? क्या हम इसे जान सकते हैं?
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यह बात हर कोई नहीं समझ सकता| पर जो बात मुझे समझ में आ रही है, जिसका मुझे आभास हो रहा है, उसे व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ ......
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(१) पूर्णता का ध्यान कर, पूर्णता को समर्पित होकर ही हम पूर्ण हो सकते हैं|
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(२) जिस परमब्रह्म परमशिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ उसी को समर्पित होकर हम अमर हो सकते हैं|
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(३) जिसे हम परमब्रह्म, या परमशिव कहते हैं, वह ही पूर्णता है जिसको उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है| जब तक हम उसमें समर्पित नहीं हो जायेंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी|
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४) उसका एकमात्र मार्ग है --- परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की एक गहन अभीप्सा| अन्य कोई मार्ग नहीं है| जब इस मार्ग पर चलते हैं तो परमप्रेमवश प्रभु निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं|
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(५) कुछ बनना और कुछ होना ------ ये दोनों अलग अलग अवस्थाएं है, जो कभी एक नहीं हो सकतीं|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन और आप सब को अहैतुकी प्रेम | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते |पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||
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