हे गुरु रूप ब्रह्म, आप ही इस नौका के कर्णधार है .....
जीवन के अंधेरे मार्गों पर आप ही मेरे मार्गदर्शक हैं ......
इस अज्ञानांधकार की निशा में आप ही मेरे चन्द्रमा हैं .....
आप ही मेरे ज्ञानरूपी दिवस के सूर्य हैं .....
मेरे बिखरे हुए भटकते विचारों के ध्रुव भी आप ही हैं .....
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प्रबल चक्रवाती झंझावातों और भयावह अति उत्ताल तरंगों से त्रस्त इस दारुण दुःखदायी भवसागर की इस घोर तिमिराच्छन्न निशा में इस असंख्य छिद्रों वाली देहरूपी नौका के कर्णधार जब आप स्वयं ही बने हैं, तब अंतर्चैतन्य में कोई अन्धकार रहा ही नहीं है, सम्पूर्ण अस्तित्व ज्योतिर्मय है व चारों ओर आनंद ही आनंद और अनुकूलता है|
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अब इसी दिव्य चेतना में अवस्थित रखो, भवसागर का तो कोई आभास ही नहीं है| लगता है पार हो ही गया है|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव शिव शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
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