Sunday 21 January 2018

राग-द्वेष से कैसे मुक्त हों ? .......

राग-द्वेष से कैसे मुक्त हों ? ....... 
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यह सबसे बड़ी आवश्यकता और समस्या है जो हरेक साधक के समक्ष आती है| हर साधक की अपनी अपनी समस्या है अतः कोई एक ही सामान्य उत्तर सभी के लिए नहीं हो सकता| एक सामान्य उत्तर तो यही हो सकता है कि हमारा अनुराग परमात्मा के प्रति इतना अधिक हो जाए कि अन्य सब विषयों से अनुराग समाप्त ही हो जाए| जब राग ही नहीं रहेगा तो द्वेष भी नहीं रहेगा| आत्मानुसंधान भी साथ साथ ही होना चाहिए| सबसे कठिन कार्य है अनात्मा सम्बन्धी सभी विषयों से उपरति, यानि प्रज्ञा करना|
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तमेव धीरो विज्ञाय प्रज्ञां कुर्वीत ब्राह्मणः |
नानुध्यायाद् बहूब्छब्दान्वाची विग्लापन हि तदिति ||बृहद., ४/४/२९)
श्रुति भगवती के आदेशानुसार बुद्धिमान् ब्राह्मण को चाहिए कि परमात्मा को जानने के लिए उसी में बुद्धि को लगाये, अन्य नाना प्रकार के व्यर्थ शब्दों की ओर ध्यान न दे, क्योंकि वह तो वाणी का अपव्यय मात्र है|
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मुण्डकोपनिषद, कठोपनिषद, गीता और रामचरितमानस में भी इसी आशय के उपदेश हैं| पर इन उपदेशों का पालन बिना वैराग्य के असम्भव है|
मैं स्वयं निज जीवन में इन्हें अपनाने में अब तक विफल रहा हूँ, अतः इनके ऊपर स्वयं के अतिरिक्त अन्य किसी को कोई उपदेश नहीं दे सकता| फिर भी मैं वैराग्य का प्रयास करता रहूँगा| इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में ही सही|
वासना सम्बन्धी विषयों का चिंतन न हो, और चिंतन सिर्फ परमात्मा का ही हो, यही तो वास्तविक साधना है, जिस का निरंतर अभ्यास होता रहे| जैसे एक रोगी के लिए कुपथ्य होता है वैसे ही एक आध्यात्मिक साधक के लिए अनात्म विषय होते हैं|
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इस विषय पर इससे आगे और लिखने की सामर्थ्य मुझ अकिंचन में नहीं है| हे प्रभु, आपकी जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
२० जनवरी २०१८

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