Sunday 21 January 2018

पहले परमात्मा को प्राप्त करो, फिर कुछ और .....

पहले परमात्मा को प्राप्त करो, फिर कुछ और .....
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लगता है सारा जीवन मैनें अपने प्रारब्ध कर्मफलों को भोगने में ही व्यतीत कर दिया| जो जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान की प्राप्ति था, उस दिशा में क्या प्रगति की यह तो भगवान ही जानते हैं, कुछ कह नहीं सकता| मुझे तो लगता है कि कुछ भी प्रगति नहीं की है| भगवत प्राप्ति की अभीप्सा और सच्चिदानंद से प्रेम ... बस यही एकमात्र उपलब्धि है इस जीवन की| इससे आगे और कुछ भी नहीं मिला इस जीवन में| कोई बात नहीं, जीवन एक सतत प्रक्रिया है| इस जन्म में नहीं तो अगले में ही सही, भगवान कहीं दूर नहीं है, अवश्य मिलेंगे| वे भी जायेंगे कहाँ? मेरे बिना वे भी दुःखी हैं, वैसे ही जैसे एक पिता अपने पुत्र से बिछुड़ कर दुखी होता है| वे भी मेरे लिए व्याकुल हैं|
श्रुति भगवती के आदेशानुसार बुद्धिमान् ब्राह्मण को चाहिए कि परमात्मा को जानने के लिए उसी में बुद्धि को लगाये, अन्य नाना प्रकार के व्यर्थ शब्दों की ओर ध्यान न दे, क्योंकि वह तो वाणी का अपव्यय मात्र है|
तमेव धीरो विज्ञाय प्रज्ञां कुर्वीत ब्राह्मणः |
नानुध्यायाद् बहूब्छब्दान्वाची विग्लापन हि तदिति ||बृहद., ४/४/२९)
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मुण्डकोपनिषद, कठोपनिषद, गीता और रामचरितमानस में भी इसी आशय के उपदेश हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२० जनवरी २०१८

1 comment:

  1. (१) मेरा स्वभाव और स्वधर्म .... परमात्मा से प्रेम है|
    (२) मेरा Religion यानि मज़हब यानि पंथ .... परमात्मा की अनन्तता पर ध्यान और सूक्ष्म प्राणायाम है|
    (३) मेरी जाति कुल व गौत्र ..... वही है जो परमात्मा का है| यह देह तो एक दिन नष्ट हो कर पंचभूतों में मिल जायेगी पर परमात्मा के साथ मेरा सम्बन्ध शाश्वत है|

    इन पंक्तियों को लिखते समय ब्रह्ममुहूर्त में हमारे मोहल्ले की माताएँ हरि-संकीर्तन करते हुए नित्य नियमित अपनी प्रभातफेरी निकाल रही हैं| उनकी दिव्य वाणी से सारा वातावरण परमात्मा की चेतना और भक्ति से भर गया है| और कुछ लिखना सम्भव नहीं है| आप सब को नमन!

    ॐ ॐ ॐ !!

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