Monday, 16 September 2024

अपने दिन का आरंभ और समापन, परमात्मा के गहनतम ध्यान से करें, और हर समय परमात्मा का स्मरण करते रहें :---

 जहाँ तक भगवान के ध्यान का प्रश्न है, इस विषय पर मैं किसी से भी किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं कर सकता। यही मेरा जीवन है, और मेरा समय नष्ट करने वालों को मैं विष (Poison) की तरह इसी क्षण से दूर कर रहा हूँ। तमाशवीन और केवल जिज्ञासु लोगों के लिए भी मेरे पास जरा सा भी समय नहीं है।

.
मैंने वे सारी साधनाएँ भी छोड़ दी हैं जो किसी भी तरह के भोग का आश्वासन, या बदले में कुछ देती हैं। किसी भी तरह का कणमात्र भी भोग नहीं, पूर्ण सत्यनिष्ठा से परमात्मा से केवल योग (पूर्ण समर्पण और जुड़ाव) ही चाहिये। साधना भी वह ही करें जो हमें भगवान से पूरी तरह जोड़ती हैं। किसी भी तरह की कामना न होकर, केवल समर्पण और भक्ति होनी चाहिये।
.
उन सब लोगों से भी इसी क्षण से संपर्क तोड़ रहा हूँ, जो निष्ठावान नहीं हैं, और जिनके हृदय में भक्ति व सत्य-निष्ठा नहीं है। जो सिर्फ बातें करते हैं, उनकी ओर मुंह उठाकर देखने की भी मेरी इच्छा नहीं है। स्वयं की कमियों का भी मुझे पता है, वे भी भगवान की कृपा से दूर हो रही हैं।
.
प्रातः काल उठते ही लघुशंकादि से निवृत होकर, मुंह धोकर, अपने ध्यान के आसन पर बैठ जाएँ, और कम से कम एक घंटे तक परमात्मा का ध्यान करें। ध्यान के समय ऊनी कंबल या कुशा घास के आसन पर बैठें, मेरुदंड उन्नत, ठुड्डी भूमि के समानान्तर, मुख पूर्व या उत्तर दिशा में, दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर, व चेतना सर्वव्यापी हो। प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही, और रात्रि में शयन से पूर्व भी, परमात्मा का गहनतम ध्यान करें।
.
प्रश्न : -- ध्यान किस का करें ?
उत्तर :-- ध्यान सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का करें।
"दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥११:१२॥" (श्रीमदभगवद्गीता)
आकाश में सहस्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश होगा, वह उस (विश्वरूप) परमात्मा के प्रकाश के सदृश होगा॥ (वही ज्योतिर्मय ब्रह्म है, उसी का ध्यान करें)
.
(प्रश्न) : ध्यान कैसे करें?
(उत्तर) : ध्यान का आरंभ अनन्य-योग द्वारा अजपा-जप (हंसःयोग) और ओंकार साधना से करें। आगे का मार्ग जगन्माता स्वयं दिखायेंगी। किसी भी तरह का कोई भी संशय हो तो किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय (जिन्हें श्रुतियों का ज्ञान हों) आचार्य से मार्गदर्शन लें। इधर-उधर न भटकें।
परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना को गीता में भगवान ने व्यभिचार की संज्ञा दी है। हमारी भक्ति अव्यभिचारिणी हो।
.
मंगलमय शुभ कामनाएँ। आपका जीवन कृतार्थ हो, और आप कृतकृत्य हों।
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने,
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ सितंबर २०२४ 🙏🙏🙏🕉 🙏🙏🙏
.
पुनश्च: --- कृपा कर के वे सब सज्जन भी मेरे से संपर्क तोड़ दें, जिनके हृदय में भगवान की भक्ति नहीं है। मुझे उनकी आवश्यकता नहीं है। वे मेरी मित्रता सूची से भी हट जाएँ।

No comments:

Post a Comment