Monday 16 September 2024

मेरे पास कोई करामात (चमत्कार) नहीं है, अतः लौकिक दृष्टि से संसार के लिए महत्त्वहीन हूँ ---

मेरे पास कोई करामात (चमत्कार) नहीं है, अतः लौकिक दृष्टि से संसार के लिए महत्त्वहीन हूँ। मुझसे किसी को कोई लाभ नहीं हो सकता। मेरी कोई संपत्ति भी नहीं है। मेरी बुद्धि जो कुबुद्धि, कुरूपा और वृद्धा हो गई थी, अब शिव को समर्पित हो गई है जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया है। मुझ निर्धन के पास भगवान को देने के लिए कुछ भी नहीं था, अतः स्वयं को ही समर्पित कर दिया है। अब मन, अहंकार और चित्त सब -- शिव के हो गए हैं। मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। एकमात्र अस्तित्व परमशिव का है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ सितंबर २०२४
.
पुनश्च: --- "हमारा एकमात्र व्यवहार परमात्मा से है।"
युद्धभूमि में सामने शत्रु है तो, भगवान को कर्ता बनाकर बड़े प्रेम से उसका संहार/वध करो, लेकिन मन में घृणा या क्रोध न आने पाये। हमें निमित्त बनाकर भगवान ही उसे नष्ट कर रहे हैं।
मित्र है तो भगवान को ही कर्ता बनाकर उसे अपने हृदय का पूर्ण प्रेम दो। भगवान स्वयं ही सारे सगे-संबंधी, और शत्रु-मित्र के रूप में आते हैं। हमारा एकमात्र व्यवहार परमात्मा से ही है।

No comments:

Post a Comment