Monday, 16 September 2024

भगवान अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं ---

भगवान अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं। असत्य के अंधकार से युद्ध भी वे स्वयं ही लड़ रहे हैं। वे ज्योतिर्मय हैं, वे नारायण हैं, वे परमशिव परमब्रह्म हैं। जो वे हैं, वो ही मैं हूँ -- यह भाव सदा हर समय बना रहना चाहिए। मन ही मन निरंतर हर समय उनकी उपस्थिती का बोध सर्वव्यापी दिव्य ज्योति और कूटस्थ अक्षर के रूप में बना रहे। उनके प्रकाश में निरंतर वृद्धि और निरंतर विस्तार ही हमारी साधना और हमारा जीवन है। उनकी विस्मृति ही हमारा पतन और हमारी मृत्यु है।
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असत्य का अंधकार पराभूत हो सकता है, लेकिन नष्ट नहीं हो सकता, अन्यथा सृष्टि ही समाप्त हो जाएगी। यह सृष्टि प्रकाश और अंधकार का खेल है। भगवान ने यह बोध करा दिया है कि वर्तमान में इस समय इस सृष्टि में ९२ प्रतिशत लोग तमोगुणी हैं, ६ प्रतिशत लोग रजोगुणी हैं, और मात्र २ प्रतिशत लोग सतोगुणी हैं। इस समय कोई दो लाख में से एक व्यक्ति के हृदय में भगवान की वास्तविक भक्ति होती है। यह अनुपात कम और अधिक होता रहता है। भगवान हमारे चारों ओर हैं, वे ही हमारे कवच है, और वे ही हमारी रक्षा कर रहे हैं।
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एक बात और है -- इस सृष्टि में यदि शत-प्रतिशत लोग सतोगुणी या तमोगुणी हो जायेंगे, तो यह सृष्टि उसी क्षण नष्ट हो जाएगी, इस सृष्टि का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। इस प्रकाश और अंधकार के खेल में हम निरंतर हर समय प्रकाश के साथ रहें। यही हमारी उपासना और यही हमारी साधना है।
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अपेक्षा व कामना ही हमारा पतन और हमारी मृत्यु है। समर्पण ही जीवन और समर्पण ही हमारी साधना है। यह एक रणभूमि है जिसमें भगवान स्वयं युद्ध कर कर रहे हैं। हम एक साक्षीमात्र या उनकी एक अभिव्यक्ति मात्र हैं। राम और रावण के मध्य हो रहे युद्ध के साक्षी भी हम स्वयं हैं। हमारी चेतना में ही वह युद्ध निरंतर हो रहा है।
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सभी का मंगल हो। सभी कृतकृत्य हों व सभी का जीवन कृतार्थ हो। सभी को परमात्मा का शुभ आशीर्वाद !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ सितंबर २०२४
. पुनश्च: --- गहन ध्यान में एक बात तो भगवती ने आज स्पष्ट कर दी। उन्होंने कहा कि तुम्हारा ज्ञान, अज्ञान और विज्ञान आदि सब कुछ "मैं" हूँ। तुम सोचते हो कि तुम परमशिव का या पुरुषोत्तम का ध्यान करते हो, यह तुम्हारा अज्ञान है। तुम कुछ नहीं करते, तुम एक निमित्त मात्र हो, एकमात्र कर्ता "मैं" हूँ। तुम्हारा अस्तित्व मेरे मन की एक कल्पना मात्र है। तुम अकिंचन भी हो, और सर्वस्व भी। लेकिन अब से अकिंचन भाव छोड़ कर सर्वस्व भाव में रहो। जो भी तुम कर रहे हो वह करते रहो, लेकिन कर्ता होने का अहंकार मत लाओ। ---------
और कुछ लिखने की मुझ में क्षमता नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!

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