ईश्वर, धर्म और राष्ट्र से अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय में मेरी अब कोई रुचि नहीं रही है। प्रेरणा मिलती है एकांत में ईश्वर के निरंतर ध्यान और चिंतन-मनन की। स्वाध्याय करने और प्रवचन आदि सुनने में भी मेरी कोई रुचि नहीं रही है। कभी कभी गीता का स्वाध्याय अवश्य करता हूँ, वह भी कभी कभी और बहुत कम। इस वर्तमान जीवन के अंत काल तक परमात्मा के चिंतन, मनन और ध्यान में ही समय व्यतीत हो जाएगा। अन्य कोई स्पृहा नहीं है। बचा-खुचा सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है। किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। परमात्मा में मैं आप सब के साथ एक हूँ, कोई भी या कुछ भी मुझसे पृथक नहीं है।
"ॐ ईशावास्यमिदम् सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत |
तेनत्येक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्य स्विद्धनम् ||१||"
"वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम् |
ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ||१७||"
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते |
ॐ शांति: शांति: शांतिः ||
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
,कृपा शंकर
१५ सितंबर २०२४
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