Monday, 16 September 2024

मैं सनातन हिन्दू धर्म के ईसाईकरण का हर कदम पर विरोध करता हूँ ---

आजकल हर व्यक्ति अपनी संतान को अंग्रेज़ बनाना चाहता है, कोई भी अपनी संतान को भारतीय नहीं बनाना चाहता। सभी अंग्रेज़ बन गए तो भारतीय कौन होगा? कोई भी अपनी संतान को सनातन धर्म और संस्कृत भाषा की शिक्षा नहीं देना चाहता।

जीसस क्राइस्ट की पूजा भगवान श्रीकृष्ण के साथ, और मदर टेरेसा की पूजा भगवती महाकाली के साथ भारत के अनेक हिन्दू आश्रमों और मंदिरों में हो रही है। यह अधर्म और पाप है। मैं असहमति में अपना हाथ उठाता हूँ। एक सुव्यवस्थित तरीके से सनातन हिन्दू धर्म को नष्ट कर उसके ईसाईकरण का प्रयास किया जा रहा है। गीता और बाइबिल को एक बताया जा रहा है।
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भारत के शासक पिछली दो शताब्दियों से आत्म-मुग्धता और अहंकार में डूबे हुए किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। उन्हें धर्म व राष्ट्र की कोई चिंता नहीं है। ये धर्मनिरपेक्षतावाद/समाजवाद/साम्यवाद/मार्क्सवाद/प्रगतिवाद जैसी विचारधाराएँ -- हिंदुओं की सबसे बड़ी घातक शत्रु हैं। एक बहुत बड़े षड़यंत्र के अंतर्गत हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा से वंचित रखा गया है। भारत के संविधान की कुछ धाराएँ हिंदुओं को अपने विद्यालयों में हिन्दू धर्म की शिक्षा का अधिकार नहीं देती। कान्वेंट स्कूलों और मदरसों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त है, लेकिन गुरुकुलों की शिक्षा को नहीं। हिन्दू मंदिरों का धन हिन्दू-धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए होना चाहिए, न कि सरकारी लूट के लिए।
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एक व्यक्ति जिसने कभी किसी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, सिर्फ मदरसों में ही पढ़ाई की, भारत का केंद्रीय शिक्षामंत्री हो सकता है, लेकिन एक गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त बड़े से बड़ा विद्वान किसी सरकारी कार्यालय में चपड़ासी तक नहीं हो सकता। समाजवाद, मार्क्सवाद, गांधीवाद, सेकुलरवाद, पूंजीवाद आदि फालतू अनुपयोगी सिद्धान्त हमें पढ़ाये जाते हैं, लेकिन सनातन-धर्म (जो हमारा प्राण है), की अपरा-विद्या व परा-विद्या के सार्वभौम नियमों के बारे में कुछ भी नहीं पढ़ाया जाता ।
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इस पृथ्वी पर सत्-तत्व का अभाव है। मैं जहाँ भी हूँ, जहाँ भी भगवान ने मुझे रखा है, वहीं उनको आना ही पड़ेगा, और स्वयं को मुझ में पूर्ण रूप से व्यक्त भी करना होगा। मैं अधर्म का साथ नहीं दे सकता। अंतिम क्षण तक कूटस्थ-चैतन्य (ब्राह्मी स्थिति) यानि परमात्मा की चेतना में रहूँगा। मैं शाश्वत आत्मा हूँ, यह नश्वर देह नहीं। इस संसार से नहीं, मोह सिर्फ परमात्मा से है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ सितंबर २०२४

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