Monday 14 February 2022

पृथ्वी पर भार कौन है? ---

पृथ्वी पर भार कौन है? ---
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महाराजा भर्तृहरिः अपने "नीति शतक" के तेरहवें श्लोक में बताते हैं कि इस पृथ्वी पर भार कौन है? ---
"येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः |
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ||"
अर्थात् जिन लोगों ने न तो विद्या-अर्जन किया है, न ही तपस्या में लीन रहे हैं, न ही दान के कार्यों में लगे हैं, न ही ज्ञान अर्जित किया है, न ही अच्छा आचरण करते हैं, न ही गुणों को अर्जित किया है, और न ही धार्मिक अनुष्ठान किये हैं, ऐसे लोग इस मृत्युलोक में मनुष्य के रूप में मृगों की तरह भटकते रहते हैं और ऐसे लोग इस धरती पर भार की तरह हैं|
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भर्तृहरिः की "नीति शतक" और "वैराग्य शतक" मैंने पढ़ी हैं| दोनों ही बहुत अच्छी और पढ़ने योग्य पुस्तकें हैं| उनकी एक और प्रसिद्ध रचना है -- "शृंगार शतक", जिसके बारे में मुझे नहीं पता| .
जीवन में सर्वप्रथम भगवान को प्राप्त करो फिर उनकी चेतना में अन्य सारे कर्म करो| भगवान को प्राप्त करने का अधिकारी सिर्फ भगवान का भक्त है जिसने भगवान में अपने सारे भावों का अर्पण कर दिया है|
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जिसने भगवान को प्राप्त कर लिया है, वह व्यक्ति इस पृथ्वी पर चलता-फिरता देवता है| यह पृथ्वी भी ऐसे व्यक्ति को पाकर सनाथ व धन्य हो जाती है| जहाँ भी उसके चरण पड़ते हैं वह स्थान पवित्र हो जाता है| वह स्थान, परिवार व कुल -- धन्य है जहाँ ऐसी पवित्र आत्मा जन्म लेती हैं|
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भारत एक धर्मनिष्ठ आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र हो, जहाँ की राजनीति -- सत्य सनातन धर्म हो| इसका संकल्प प्रत्येक धर्मप्रेमी को सत्यनिष्ठा से करना होगा| सेक्युलरिज़्म का अर्थ है -- सनातन हिंदु आस्थाओं पर मर्मांतक प्रहार| वर्तमान सेक्युलर व्यवस्था -- हिन्दू धर्म को नष्ट कर देना चाहती है|
मेरी आस्था किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक संगठन या समूह पर नहीं रही है| सिर्फ परमात्मा पर ही मेरी आस्था है| उन्हीं से प्रार्थना करेंगे| उन्हीं का वचन है --
"अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ||४:६||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ||४:७||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ||४:८||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१५ फरवरी २०२१

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