Monday 15 August 2016

भारत को परम वैभव पर पहुँचाने की दो सीढ़ियाँ ........

भारत को परम वैभव पर पहुँचाने की दो सीढ़ियाँ ........
>
जब मैं भारत की सोचता हूँ तो पाता हूँ कि भारत का अर्थ है सनातन धर्म| मेरे लिए श्री अरविन्द के शब्दों में सनातन धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन धर्म है| दोनों कभी पृथक नहीं हो सकते| सनातन धर्म का विस्तार ही भारत का विस्तार है और सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है|
भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जो जीवन में जो श्रेष्ठतम और उच्चतम है उसे पाने का प्रयास करते है, अपनी चेतना को विस्तृत कर समष्टि से जुड़ना चाहते हैं, और नर में नारायण को साकार करते हैं|
कालखंड में एक अल्प समय ऐसा आता है जब अज्ञान, दू:ख, दुर्बलता, स्वार्थपरता और तामसिकता में विश्व डूब जाता है और भारत भी दुर्बलता और अवनति के गड्ढे में गिर जाता है ताकि वह आत्मसंवरण कर ले| इस काल खंड में भारत के योगी और तपस्वी गण भी संसार से अलग होकर केवल अपनी मुक्ति या आनन्द या अपने शिष्यों की मुक्ति के लिए ही प्रयासरत हो जाते है| जन सामान्य को भी अपने भौतिक सुख के आगे कुछ और दिखाई नहीं देता|
पर अब वह समय निकल चूका है| अब ईश्वर की इच्छा है की भारत फिर ऊपर उठे| भारत के अभ्युदय को अब कोई नहीं रोक सकता| साक्षात् भगवती चेतना ने अब भारत को शने: शने: ऊपर उठाने का कार्य अपने हाथ में ले लिया है| ज्ञान की गति भी पुन: प्रसारित होने लगी है और भारत की आत्मा का भी प्रसार होने लगा है| भारत भूमि में दिव्य चेतना से युक्त महान आत्माओं का अवतरण हो रहा है और वह दिन अधिक दूर नहीं है जब तामसिक और जड़ बुद्धि के लोगों का भारत से सम्पूर्ण विनाश होगा|
भौतिक स्तर पर भारत को सिर्फ दो कार्य करने होंगे फिर सब अपने आप सही हो जाएगा|
सर्वप्रथम भारत को अपनी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था और कृषि व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना होगा|
फिर सब कुछ सही होने लगेगा|
आध्यात्मिक स्तर पर हमें जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाना होगा|
फिर भारत के अभ्युदय को कोई नहीं रोक सकता|
मैंने यहाँ जो भी लिखा है वह अब तक के मेरे अनुभव और अंतर्प्रज्ञा से है| मुझे न तो किसी का सहयोग चाहिए और न समर्थन| "निराश्रयम् मां जगदीश रक्ष:|"
जो मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं वे मुझे अपनी मित्रता सूचि से बाहर कर दें| किसी मंच को मेरे विचार अच्छे नहीं लगते तो मुझे वहां से भी निष्कासित कर सकते हैं|
मेरे आश्रय सिर्फ जगदीश हैं| अन्य किसी का आश्रय मुझे नहीं चाहिए|
एक व्यक्ति का संकल्प भी समस्त सृष्टि को बदल सकता है| हो सकता है कि वह व्यक्ति आप ही हों| ॐ|

No comments:

Post a Comment