सामान्य
मानवीय चेतना से ऊपर उठिए| स्वयं को दीन हीन व अकिंचन मत समझिये| अपने
भौतिक व्यक्तित्व व शरीर की चेतना से ऊपर उठिए| आप यह देह नहीं परमात्मा के
निज रूप हैं|
विश्व में आज तक जितने भी महान कार्य हुए हैं वे सारे महान कार्य उन लोगों के माध्यम से सम्पादित हुए जो अत्यंत सरल और सांसारिक रूप से सामान्य व्यक्ति थे| अपनी चेतना को ईश्वर की चेतना से जोड़िये| अपने अन्तस्थ में प्रभु को ढूँढिए| इस प्रक्रिया में अनायास ही अनेक दिव्य और अकल्पनीय कार्य आपके माध्यम से हो जायेंगे|
संसार में कुछ भी नि:शुल्क नहीं है| हर चीज का मुल्य चुकाना होता है| एक दीपक पहले स्वयं जलता है तब जाकर उसका प्रकाश औरों को मिलता है| दीपक पतंगों को प्यारा है| वे दीपक के प्रेम में इतने उन्मत्त हो जाते हैं कि उसकी लौ में स्वयं को जला देते हैं| पर वास्तव में सत्य कुछ और ही है| दीपक पहले अपने आप को जलाता है, उसके बाद ही पतंगे उस की लौ से प्रेम करते हैं|
आप जो भी महान कार्य होते हुए आप देखना चाहते हैं उसका संकल्प निरंतर निज चेतना में बनाए रखिये| आप का संकल्प कभी भी विस्मृत न हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
.............................................................................
पुनश्च : मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
.
मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है| इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
६ अप्रेल २०१७
विश्व में आज तक जितने भी महान कार्य हुए हैं वे सारे महान कार्य उन लोगों के माध्यम से सम्पादित हुए जो अत्यंत सरल और सांसारिक रूप से सामान्य व्यक्ति थे| अपनी चेतना को ईश्वर की चेतना से जोड़िये| अपने अन्तस्थ में प्रभु को ढूँढिए| इस प्रक्रिया में अनायास ही अनेक दिव्य और अकल्पनीय कार्य आपके माध्यम से हो जायेंगे|
संसार में कुछ भी नि:शुल्क नहीं है| हर चीज का मुल्य चुकाना होता है| एक दीपक पहले स्वयं जलता है तब जाकर उसका प्रकाश औरों को मिलता है| दीपक पतंगों को प्यारा है| वे दीपक के प्रेम में इतने उन्मत्त हो जाते हैं कि उसकी लौ में स्वयं को जला देते हैं| पर वास्तव में सत्य कुछ और ही है| दीपक पहले अपने आप को जलाता है, उसके बाद ही पतंगे उस की लौ से प्रेम करते हैं|
आप जो भी महान कार्य होते हुए आप देखना चाहते हैं उसका संकल्प निरंतर निज चेतना में बनाए रखिये| आप का संकल्प कभी भी विस्मृत न हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्च : मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
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मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है| इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
६ अप्रेल २०१७
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