काले पानी की कुछ पुरानी स्मृतियाँ .....
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पोर्ट ब्लेयर (अंडमान) जाने का जीवन में कई बार अवसर मिला है| वहाँ की सेल्युलर जेल जिसे काले पानी की जेल भी कहते हैं, कई बार देखी है| विशेष कर के वह कोठरी जिस में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने दो दो उम्रकैद की सजा काटी, वहाँ श्रद्धासुमन अवश्य चढ़ाये हैं|
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पोर्ट ब्लेयर (अंडमान) जाने का जीवन में कई बार अवसर मिला है| वहाँ की सेल्युलर जेल जिसे काले पानी की जेल भी कहते हैं, कई बार देखी है| विशेष कर के वह कोठरी जिस में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने दो दो उम्रकैद की सजा काटी, वहाँ श्रद्धासुमन अवश्य चढ़ाये हैं|
वहाँ की सबसे प्रमुख स्मृति ११ फरवरी १९७९ की है जिस दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने उस जेल को एक राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था| उस दिन उस समय मैं वहीं पर उपस्थित था| उस समय के जीवित बचे हुए स्वतन्त्रता सेनानियों को निमंत्रित कर के कोलकाता से एक पानी के यात्री जहाज से ससम्मान बुलाया गया था|
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उस जेल के सात भाग थे जिनमें से चार को जापानियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नष्ट कर दिया था| बाकी बचे तीन में से एक भाग में वहाँ की स्थानीय जेल है, एक भाग में "गोबिंदवल्लभ पन्त अस्पताल" है, और बचा हुआ एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है जिसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया हुआ है| वीर सावरकर की कोठरी इसी भाग में दूसरी मंजिल पर है जिस पर लोहे के सीन्खचों के दो दो दरवाजे हैं| शाम के समय वहाँ के मैदान में एक Light and Sound Show भी होता है जिसे देखने पर्यटकों की भारी भीड़ आती है| वहीं पास में एक म्यूजियम है और वह कोठरी भी है जहाँ फांसी दी जाती थी| पास में ही एक दूसरा छोटा सा वाइपर द्वीप है जहाँ महिलाओं को फांसी दी जाती थी|
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उस कालखंड के इतिहास पर अनेक शोध हुए हैं और अनेक पुस्तकें लिखी गयी हैं| मैं वहाँ के कई द्वीपों में खूब घूमा हूँ और बहुत अधिक स्मृतियाँ हैं| ग्रेट निकाबार द्वीप पर भारत के सबसे दक्षिणी भाग "इंदिरा पॉइंट" पर भी जाने का अवसर सुनामी से पहले मिला है| कुल मिलाकर यह बहुत ही सुन्दर स्थान है जहाँ जीवन में एक बार तो अवश्य ही जाना चाहिए|
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मुझे गर्व है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बीते हुए कल ३० दिसम्बर २०१८ को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष बोस को वह सम्मान दिया जिसके वे पूर्ण अधिकारी थे| ३० दिसंबर १९४३ को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया थ| भारत की धरती पर यह स्वतंत्रता की प्रथम निशानी थी| सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आज़ाद सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे| उनकी सरकार को ९ देशों जिन में जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया (अब चीन का भाग) और क्रोएशिया प्रमुख थे, ने मान्यता दी थी| आजाद हिन्द सरकार भारत की अस्थायी सरकार थी जिसे सिंगापुर में १९४३ में स्थापित किया गया था| दूसरी हर्ष की बात यह है कि एक करोड़ से अधिक भारतीयों के हत्यारे तीन अँगरेज़ सेनानायकों के सम्मान में रखे हुए तीन द्वीपों के नाम बदले गए हैं|
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पोर्ट ब्लेयर में रहने वाले राजस्थान के प्रवासियों ने वहाँ की एक पहाडी पर एक बहुत ही शानदार मंदिर बनाया हुआ है जिसे वहाँ के स्थानीय लोग "राजस्थान मंदिर" ही कहते हैं| वहाँ का मुख्य विग्रह भगवान श्री राधा-कृष्ण का है, साथ साथ अन्य देवी-देवताओं के विग्रह भी हैं|
पोर्ट ब्लेयर में हिंदी साहित्य का एक संग्रहालय भी है जिसमें हिन्दी साहित्य की लगभग डेढ़-दो हज़ार से अधिक अमूल्य पुस्तकों का संग्रह है|
धार्मिक दृष्टी से वहाँ "चिन्मय मिशन" का एक केंद्र है जहाँ कई धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं| वहां के स्वामी जी मेरी बहुत घनिष्ठता थी|
माता अमृतानन्दमयी के भी कई अनुयायी हैं वहाँ जिन के भी कार्यक्रम होते रहते हैं|
वहाँ वनवासी कल्याण परिषद् का भी एक आश्रम है जहाँ से वनवासियों के कल्याण हेतु कई सेवा के कार्य होते रहते हैं| वनवासी कल्याण परिषद् से मैं भी कभी जुड़ा हुआ था| वहाँ २००१ में संघ के एक प्रचारक थे जो कभी मेरे बहुत घनिष्ठ मित्र थे, अब बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष हैं| यदि बंगाल में भाजपा की सरकार बनी तो हो सकता है वे वहाँ के मुख्य मंत्री बनें| संघ से जुड़े हुए वहाँ के सभी स्वयसेवकों से २००१ में मेरी बहुत घनिष्ठता थी| अब इस समय तो कोई संपर्क नहीं है|
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उस जेल के सात भाग थे जिनमें से चार को जापानियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नष्ट कर दिया था| बाकी बचे तीन में से एक भाग में वहाँ की स्थानीय जेल है, एक भाग में "गोबिंदवल्लभ पन्त अस्पताल" है, और बचा हुआ एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है जिसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया हुआ है| वीर सावरकर की कोठरी इसी भाग में दूसरी मंजिल पर है जिस पर लोहे के सीन्खचों के दो दो दरवाजे हैं| शाम के समय वहाँ के मैदान में एक Light and Sound Show भी होता है जिसे देखने पर्यटकों की भारी भीड़ आती है| वहीं पास में एक म्यूजियम है और वह कोठरी भी है जहाँ फांसी दी जाती थी| पास में ही एक दूसरा छोटा सा वाइपर द्वीप है जहाँ महिलाओं को फांसी दी जाती थी|
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उस कालखंड के इतिहास पर अनेक शोध हुए हैं और अनेक पुस्तकें लिखी गयी हैं| मैं वहाँ के कई द्वीपों में खूब घूमा हूँ और बहुत अधिक स्मृतियाँ हैं| ग्रेट निकाबार द्वीप पर भारत के सबसे दक्षिणी भाग "इंदिरा पॉइंट" पर भी जाने का अवसर सुनामी से पहले मिला है| कुल मिलाकर यह बहुत ही सुन्दर स्थान है जहाँ जीवन में एक बार तो अवश्य ही जाना चाहिए|
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मुझे गर्व है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बीते हुए कल ३० दिसम्बर २०१८ को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष बोस को वह सम्मान दिया जिसके वे पूर्ण अधिकारी थे| ३० दिसंबर १९४३ को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया थ| भारत की धरती पर यह स्वतंत्रता की प्रथम निशानी थी| सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आज़ाद सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे| उनकी सरकार को ९ देशों जिन में जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया (अब चीन का भाग) और क्रोएशिया प्रमुख थे, ने मान्यता दी थी| आजाद हिन्द सरकार भारत की अस्थायी सरकार थी जिसे सिंगापुर में १९४३ में स्थापित किया गया था| दूसरी हर्ष की बात यह है कि एक करोड़ से अधिक भारतीयों के हत्यारे तीन अँगरेज़ सेनानायकों के सम्मान में रखे हुए तीन द्वीपों के नाम बदले गए हैं|
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पोर्ट ब्लेयर में रहने वाले राजस्थान के प्रवासियों ने वहाँ की एक पहाडी पर एक बहुत ही शानदार मंदिर बनाया हुआ है जिसे वहाँ के स्थानीय लोग "राजस्थान मंदिर" ही कहते हैं| वहाँ का मुख्य विग्रह भगवान श्री राधा-कृष्ण का है, साथ साथ अन्य देवी-देवताओं के विग्रह भी हैं|
पोर्ट ब्लेयर में हिंदी साहित्य का एक संग्रहालय भी है जिसमें हिन्दी साहित्य की लगभग डेढ़-दो हज़ार से अधिक अमूल्य पुस्तकों का संग्रह है|
धार्मिक दृष्टी से वहाँ "चिन्मय मिशन" का एक केंद्र है जहाँ कई धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं| वहां के स्वामी जी मेरी बहुत घनिष्ठता थी|
माता अमृतानन्दमयी के भी कई अनुयायी हैं वहाँ जिन के भी कार्यक्रम होते रहते हैं|
वहाँ वनवासी कल्याण परिषद् का भी एक आश्रम है जहाँ से वनवासियों के कल्याण हेतु कई सेवा के कार्य होते रहते हैं| वनवासी कल्याण परिषद् से मैं भी कभी जुड़ा हुआ था| वहाँ २००१ में संघ के एक प्रचारक थे जो कभी मेरे बहुत घनिष्ठ मित्र थे, अब बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष हैं| यदि बंगाल में भाजपा की सरकार बनी तो हो सकता है वे वहाँ के मुख्य मंत्री बनें| संघ से जुड़े हुए वहाँ के सभी स्वयसेवकों से २००१ में मेरी बहुत घनिष्ठता थी| अब इस समय तो कोई संपर्क नहीं है|
भारत माता की जय ! वन्दे मातरं !
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०१८
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०१८
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