"अपराजित नमस्तेऽस्तु नमस्ते रामपूजित | प्रस्थानं च करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ||"
.
ब्रह्माण्ड पुराण में दिए हुए एकमुखी हनुमत् कवचम् में ध्यान का यह आठवाँ मन्त्र है| किसी दुर्घटना या चोर डाकुओं के भय, भूत-प्रेत बाधा अथवा शत्रुओं से किसी प्रकार के अनिष्ट की, अथवा रणभूमि में शत्रु के भीषण प्रहार की आशंका रहती है| ऐसी स्थिति आने के पूर्व ही हमे उपरोक्त मन्त्र का प्रस्थान करते समय या उससे पूर्व कम से कम ११ बार जप कर लेना चाहिए| सब संकट कट जायेंगे और हम सकुशल घर लौट आयेंगे| उच्चारण सही और शुद्ध होना चाहिए|
.
आचार्य सियारामदास नैयायिक जी ने इस विषय पर अपने ब्लॉग में लेख लिखे हैं| उनके जैसे कोई आचार्य ही इसे सिद्ध करने की सही विधि बता सकते हैं| हनुमत्कवच .... एकमुखी, पंचमुखी, सप्तमुखी और एकादशमुखी ..... अलग अलग उपलब्ध हैं| सबकी फलश्रुति भी अलग अलग है| किसी सिद्ध संत के मार्गदर्शन में ही इसे सिद्ध करें|
.
ब्रह्माण्ड पुराण में दिए हुए एकमुखी हनुमत् कवचम् में ध्यान का यह आठवाँ मन्त्र है| किसी दुर्घटना या चोर डाकुओं के भय, भूत-प्रेत बाधा अथवा शत्रुओं से किसी प्रकार के अनिष्ट की, अथवा रणभूमि में शत्रु के भीषण प्रहार की आशंका रहती है| ऐसी स्थिति आने के पूर्व ही हमे उपरोक्त मन्त्र का प्रस्थान करते समय या उससे पूर्व कम से कम ११ बार जप कर लेना चाहिए| सब संकट कट जायेंगे और हम सकुशल घर लौट आयेंगे| उच्चारण सही और शुद्ध होना चाहिए|
.
आचार्य सियारामदास नैयायिक जी ने इस विषय पर अपने ब्लॉग में लेख लिखे हैं| उनके जैसे कोई आचार्य ही इसे सिद्ध करने की सही विधि बता सकते हैं| हनुमत्कवच .... एकमुखी, पंचमुखी, सप्तमुखी और एकादशमुखी ..... अलग अलग उपलब्ध हैं| सबकी फलश्रुति भी अलग अलग है| किसी सिद्ध संत के मार्गदर्शन में ही इसे सिद्ध करें|
अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हमें स्वयं को भी और निर्वीर्य हो चुके असंगठित बिखरे हुए बलहीन समाज को भी संगठित व शक्तिशाली बनाना होगा| इसके लिए सूक्ष्म दैवीय शक्तियों की सहायता भी लेनी होगी| हमें या तो श्रीहनुमान जी, या धनुर्धारी भगवान श्रीराम, या सुदर्शनचक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण, या भगवती दुर्गा की स्वभावानुसार उपासना करनी चाहिए| सिर्फ जयजयकार करने से काम नहीं चलेगा| निज जीवन में देवत्व को व्यक्त करना होगा| तभी हम स्वयं की, समाज की और धर्म की रक्षा कर सकेंगे| नित्य दिन में एक बार, एक निश्चित समय और निश्चित स्थान पर हम नियमित रूप से मिलकर देवत्व और राष्ट्र की साधना करें तो अपने उद्देश्य में निश्चित रूप से सफल होंगे| इस आसन्न संकट के समय सर्वाधिक फलदायी और प्रभावी साधना श्रीहनुमान जी की ही हो सकती है, ऐसी मेरी सोच है| हमारे श्रद्धेय धर्माचार्य हम सब का मार्गदर्शन करें| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
ReplyDelete