Sunday 20 January 2019

ब्रिटेन की समृद्धि के पीछे का सच जो हम से छिपाया गया है .....

ब्रिटेन की समृद्धि के पीछे का सच जो हम से छिपाया गया है .....
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वैसे तो यूरोप की सारी समृद्धि अन्य महाद्वीपों को लूट कर प्राप्त हुए धन से ही हुई है, पर ब्रिटेन की सारी समृद्धि तो भारत को लूट कर मिले हुए धन से ही हुई है| हम लोग अपनी हीनभावना के कारण अंग्रेजों को महान समझते हैं और ब्रिटेन में जाना अपनी शान समझते हैं, पर इस ऐतिहासिक तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि सत्रहवीं शताब्दी तक समूचा ब्रिटेन अर्धसभ्य लोगों का उजाड़ देश था जो झोंपड़ियों में रहते थे| उनकी झोपड़ियाँ घासफूस और सरकंडों की बनी होती थीं, जिनके ऊपर मिट्टी का गारा लगाया हुआ होता था| घास-फूस जलाकर घर में आग तैयार की जाती थी जिससे सारी झोपड़ी में धुआँ भर जाता था| उनकी खुराक जौ, मटर, उड़द, कन्द और वृक्षों की छाल तथा मांस थी| उनके कपड़ों में जुएँ भरी होती थीं|
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वहां की जनसंख्या बहुत कम थी, जो महामारी और दरिद्रता के कारण आए दिन घटती जाती थी| शहरों की हालत गाँवों से कुछ अच्छी न थी| शहर वालों का बिछौना भूस से भरा एक थैला होता था| तकिये की जगह लकड़ी का एक गोल टुकड़ा लगाते थे| शहरी लोग जो खुशहाल होते थे, चमड़े का कोट पहनते थे| गरीब लोग हाथ-पैरों पर पुआल लपेट कर सर्दी से जान बचाते थे| न कोई कारखाना था, न कारीगर, न सफाई का इन्तजाम, न रोगी होने पर चिकित्सा की व्यवस्था|
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सड़कों पर डाकू फिरते थे और नदियाँ तथा समुद्री मुहाने समुद्री डाकुओं से भरे रहते थे| उन दिनों दुराचार का तमाम यूरोप में बोलबाला और यौन संक्रमित करने वाली गनोरिया व सिफलिस की बीमारी सामान्य बात थी| विवाहित या अविवाहित, गृहस्थ, पादरी, और यहाँ तक कि पोप दसवें लुई तक भी इस रोग से नहीं बचे थे| पादरियों ने इंग्लैंड की लाखों स्त्रियों को भ्रष्ट किया था| कोई भी पादरी बड़े से बड़ा अपराध करने पर भी केवल थोड़े से जुर्माने की सज़ा पाता था| मनुष्य-हत्या करने पर भी केवल छः शिलिंग आठ पैंस .... लगभग पाँच रुपया जुर्माना देना पड़ता था| ढोंग-पाखण्ड और जादू-टोना पादरियों का व्यवसाय था।
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सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम चरण तक लंदन नगर इतना गंदा था और वहाँ के मकान इस कदर भद्दे थे कि उसे मुश्किल से शहर कहा जा सकता था| सड़कों की हालत ऐसी थी कि पहियेदार गाड़ियों का चलना खतरे से खाली न था| लोग गधों, घोड़ों व टट्टुओं पर लद कर यात्राएँ करते थे| अधनंगी स्त्रियां जंगली और भद्दे गीत गाती फिरती थीं, पुरुष कटार घुमा-घुमाकर लड़ाई के नाच नाचा करते थे| लिखना-पढ़ना बहुत कम लोग जानते थे, यहाँ तक कि बहुत-से लार्ड अपने हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे| प्रायः पति कोड़ों से अपनी स्त्रियों को पीटा करते थे|
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अपराधी को टिकटिकी से बाँधकर पत्थर मार-मारकर मार डाला जाता था| औरतों की टाँगों को सरेबाजार शिकंजों में कसकर तोड़ दिया जाता था| शाम होने के बाद लंदन की गलियाँ सूनी, डरावनी और अंधेरी हो जाती थीं| उस समय कोई जीवट का आदमी ही घर से बाहर निकलने का साहस कर सकता था| हर समय वहाँ लुट जाने या गला कट जाने का भय था| असभ्य औरतें खिड़की खोल कर गन्दा पानी हर किसी पर फेंक देती थीं| गलियों में लालटेन थीं ही नहीं| लोगों को भयभीत करने के लिए टेम्स के पुराने पुल पर अपराधियों के सिर काट कर लटका दिए जाते थे| धार्मिक स्वतन्त्रता न थी| सम्राट के सम्प्रदाय से भिन्न दूसरे किसी सम्प्रदाय के गिरजाघर में जाकर उपदेश सुनने की सजा मौत थी| ऐसे अपराधियों के घुटने को शिकंजे में कसकर तोड़ दिया जाता था| स्त्रियों को दंड देने के लिए सहतीरों में बाँधकर समुद्र के किनारे पर मरने के लिए छोड़ देते थे ताकि धीरे-धीरे बढ़ती हुई समुद्र की लहरें उन्हें निगल जाएँ| बहुधा उनके गालों को लाल लोहे से दागदार अमेरिका निर्वासित कर दिया जाता था| उन दिनों इंग्लैंड की रानी गुलामों के व्यापर में अपने लाभ का भाग लेती थी।
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इंग्लैंड के किसान की अवस्था उस ऊदबिलाव के समान थी जो नदी किनारे मांद बनाकर रहता हो| कोई ऐसा धंधा-रोजगार न था कि जिससे वर्षा न होने की सूरत में किसान दुष्काल से बच सकें| उस समय समूचे इंग्लैंड की जनसंख्या पचास लाख से अधिक न थी| जंगली जानवर हर जगह फिरते थे| सड़कों की हालत बहुत खराब थी| बरसात में तो सब रास्ते ही बन्द हो जाते थे| देहात में प्रायः लोग रास्ता भूल जाते थे और रात-रात भर ठण्डी हवा में ठिठुरते फिरते थे| दुराचार का बोलबाला था| राजनीतिक और धार्मिक अपराधों पर भयानक अमानुषिक सजाएं दी जाती थीं|
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यह दशा केवल ब्रिटेन की ही न थी, समूचे यूरोप की थी| यूरोप के सब देशों के निरंकुश राजा स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि बताते थे| उन की इच्छा ही कानून थी| जनता की दो श्रेणियाँ थीं| जो कुलीन थे वे ऊँचे समझे जाते थे और जो जन्म से नीच थे वे दलित माने जाते थे| ऐसा एक भी राजा न था जो प्रजा के सुख-दुख से सहानुभूति रखता हो| विलासिता और अपनी शान ही में वे मस्त रहते थे| वे अपनी सब प्रजा के जानोमाल के स्वामी थे| राजा होना उनका जन्मसिद्ध अधिकार था| उनकी प्रजा को बिना सोचे-समझे उनकी आज्ञा का पालन करना पड़ता था|
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अब आप समझ गए होंगे कि हमारे ऊपर राज्य कर के हमें दरिद्र बना कर गए हुए अँगरेज़ कैसे थे| हमारे भारत के ही एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने तो इंग्लैंड को भारत पर राज्य करने के लिए धन्यवाद भी दिया था| उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों ने भारत पर राज्य कर के भारत को सभ्य बनाया, भारत को पोस्ट ऑफिस और रेलवे दी| उनको इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय (जो भारत में लुटे हुए धन से बना था) ने डॉक्टरेट की उपाधी भी दी थी| वे बड़े शान से अपने नाम के साथ डॉक्टर की उपाधी लिखते थे| ऐसे ही भारत के एक भूतपूर्व गृहमंत्री और वित्तमंत्री ने भी इंग्लैंड में अपने एक भाषण में भारत की सभ्यता का श्रेय ब्रिटिश शासन को दिया था| मुझे भारत के ही कई तथाकथित बुद्धिजीवियों ने ही बताया था कि यदि अँगरेज़ भारत में नहीं आते तो हम भारतीय लोग झाड़ियों व गुफाओं में ही रह रहे होते| अँगरेज़ लोग जाते जाते अपना शासन अपने ही मानसपुत्र एक काले अंग्रेज़ को सौंप गए थे जिसने भारत की अस्मिता को नष्ट ही किया| धन्य है वे सब लोग !!!
सही बातों का पता सब को होना चाहिए| भारत का तो इतिहास ही भारत के शत्रुओं ने लिखा है|
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हमारी तो पं.रामप्रसाद बिस्मिल के शब्दों में एक ही कामना है कि ..... 
"तेरा गौरव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें|" भारत माता की जय! वन्दे मातरम् !

1 comment:

  1. इन नेताओं ने इंग्लैंड की गन्दगी और कुप्रथाएं तथा विकृतियां भारत के लोगों को क्यों नहीं बताई?
    -प्रो कुसुमलता केडिया
    19वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य तक इंग्लैंड में लंदन सहित सभी शहरों और कस्बों में वहां के हर आवास में रात को एक बर्तन रखा जाता था जिसमें घर भर के लोग मल त्याग करते थे और सुबह सुबह उसे खिड़कियों से बाहर सड़क में फेंक दिया जाता था जिसे 9:या 10 बजे तक सूअर गली गली में घूम कर चाट चाट कर साफ़ करते थे।
    यह सर्वमान्य और सर्वविदित तथ्य गांधी जी ,नेहरू जी तथा अन्य लोगों ने जो इंग्लैंड बार-बार जाते थे ,भारत आकर क्यों नहीं बताया ?
    या स्वयं इंग्लैंड में लन्दन के उनके परिचित इलाके में अगर उनके सामने तक यह बंद भी हो गया हो(वैसे यह बन्द नही हुआ था),तो लंदन के उस इलाके में जहां भी जाते थे तो यह क्रम तो चल ही रहा था ।।
    तो यह जानकारी उन्होंने क्यों नहीं बताई भारत आकर?
    जिसे वे अपना शत्रु देश कहते थे, उस देश की कमजोरियां विकृतियां यह सब तो एकत्र करना आवश्यक था ।
    विशेषकर जब अंग्रेज भारत के बारे में निरंतर झूठा प्रचार कर रहे थे और यहां बुराइयों की भरमार बता रहे थे ,
    उस समय तो बदले में या मात्र सत्य के आग्रह से वह सब बताना आवश्यक था।
    क्यों नहीं बताया गया?
    मुझे बहुत ही आश्चर्य होता है।
    प्रो कुसुमलता केडिया

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