Sunday 20 January 2019

जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस २५ दिसम्बर को ही क्यों मनाया जाता है ?

एक बड़ी विचित्र बात है कि जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस २५ दिसम्बर को ही क्यों मनाया जाता है ?
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उपलब्ध प्रमाणों द्वारा पता चलता है कि जीसस क्राइस्ट का जन्म दिन ईसा की तीसरी शताब्दी में रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन द ग्रेट ने तय किया था| उसी को प्रमाण माना जाता है| यह सम्राट स्वयं ईसाई नहीं था, पर इसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| स्वयं यह एक सूर्य उपासक था| जब यह मरने वाला और असहाय था तब पादरियों ने जबरदस्ती इसका बप्तिस्मा कर के इसे ईसाई बना दिया| इसी सम्राट ने ११ मई ३३० ई.को कुस्तुन्तुनिया (Constantinople) (वर्तमान में इस्ताम्बूल) को अपनी राजधानी बनाया| वर्तमान में ईसाईयत की जो दिशा है वह इसी सम्राट ने तय की थी| यहाँ तक कि वर्तमान में उपलब्ध न्यू टेस्टामेंट के सारे ग्रन्थ भी इसी ने संशोधित करवाए और जो इसे अच्छे नहीं लगे वे नष्ट करवा दिए| रविवार को छुट्टी भी इसी ने शुरू करवाई क्योंकि यह एक सूर्योपासक था| अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए इसने ईसाईयत का प्रचार-प्रसार चारों ओर आरम्भ कराया|
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कुस्तुन्तुनिया रोमन/बैज़ेन्टाइन साम्राज्य (३३०-१२०४ व १२६१-१४५३ ई.) का भाग रही| बीच में इस पर १२०४-१२६१ ई.तक लेटिन साम्राज्य का अधिकार रहा| कुस्तुन्तुनिया ईसा की पांचवीं से तेरहवीं सदी तक यूरोप का सर्वाधिक समृद्ध और भव्यतम नगर था| यहाँ का ग्रीक ऑर्थोडॉक्स कैथेड्रल हागिया सोफिया वेटिकन के बाद ईसाई मज़हब का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र था| यहाँ के एक पुस्तकालय में प्राचीन ग्रंथों की एक लाख से अधिक पांडुलिपियाँ थीं जिसे बाद में तुर्कों ने जला दिया| आरम्भ में यहीं से ईसाई मज़हब का पूरी दुनियाँ में फैलाव हुआ था|
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सन १४५३ ई.में तुर्की की सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के सुल्तान महमूद ने एक युद्ध में अपनी उस्मानी फौज द्वारा ईसाइयों को हराकर कुस्तुन्तुनियाँ पर अपना अधिकार कर लिया और अगले लगभग पाँच सौ वर्षों तक यानि सन १९२३ ई.तक यह तुर्की की राजधानी रही| सुल्तान महमूद ने हागिया सोफिया कैथेड्रल को छोड़ कर लगभग सारे नगर को नष्ट कर दिया जो यूरोपीय स्थापत्य कला का भव्यतम रूप था| यह नगर तुर्कों ने दुबारा बसाया| तुर्की की उस्मानी फौज ने वहाँ से सारे ईसाइयों को मार कर भगा दिया, जो भी पुरुष मिला उसे क़त्ल कर दिया गया, सभी महिलाओं को गुलाम बंदी बना लिया गया और जो भी कोई जीवित बचे उन्हें मुसलमान बना दिया गया| हागिया सोफिया को एक शाही मस्जिद में बदल दिया गया था पर कालान्तर में अतातुर्क मुस्तफा कमाल पाशा ने इसे बापस ईसाइयों को सौंप दिया था| अब तो वहाँ एक म्यूजियम है| यहाँ एक बात यह भी बताना चाहता हूँ कि सल्तनत-ए-उस्मानिया अपने चरम काल में विश्व की सबसे बड़ी सल्तनत थी और वहाँ के सुल्तान बड़े शक्तिशाली थे जिनसे पूरा यूरोप डरता था| पर प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की पराजित हुआ और सारी उस्मानी सल्तनत (Ottoman Empire) बिखर गयी|
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बास्फोरस जलडमरूमध्य और निकट के दर्रा-दानियल के कारण इस्ताम्बूल भौगोलिक सृष्टि से विश्व का बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण स्थान है|
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(Note: मुझे १९७६ में तुर्की में इस्तांबूल जाने का एक बार अवसर मिला था पर भाषा की समस्या रही| वहाँ के एक अधिकारी से मित्रता हो गयी थी, उसी ने वहाँ घुमाया| उसे भी पूरी अंग्रेजी नहीं आती थी| फिर एक कैफ़े का मालिक मिला जो बहुत अच्छी अंग्रेजी जानता था| उसी से वहाँ के बारे में काफी कुछ जानने को मिला| १९८८ में फिर तुर्की जाने का अवसर मिला था पर कोई विशेष बात वहाँ नहीं लगी)
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पुनश्चः ----- (बाद में जोड़ा हुआ भाग) :---
यीशु के जन्म का कोई प्रमाण कभी भी नहीं मिला| अब पश्चिमी जगत के कुछ इतिहासकार भी यह दावा कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का कोई व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं था| उनके अनुसार सैंट पॉल द्वारा रचित वे एक काल्पनिक चरित्र हैं| पर २५ दिसंबर का दिन उनके जन्मदिवस के रूप में रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन द ग्रेट ने ही तय किया था|
जीसस क्राइस्ट भौतिक रूप से कभी हुए या नहीं इससे मुझे कोई मतलब नहीं है| मेरा सम्बन्ध सिर्फ कृष्ण-चैतन्य यानी कूटस्थ चैतन्य से है जो जीसस में भी थी और जो सदा मेरे साथ भी है| जीसस में और मुझ में मैं कोई भेद नहीं पाता, जो वे थे वह ही मैं हूँ|
यूरोप के ही कई इतिहासकार अब यह दावा भी करते हैं कि जीसस क्राइस्ट ने मार्था से विवाह भी किया था और सारा नाम की एक पुत्री भी उन्हें हुई थी| मार्था की कब्र एक गुप्त स्थान पर फ़्रांस में थी, जिस की कई शताब्दियों तक एक सम्प्रदाय ने रक्षा की| उस सम्प्रदाय के लोगों को बाद में वेटिकन ने मरवा दिया और उस कब्र को नष्ट कर दिया गया| कुछ इतिहासकारों के अनुसार अपने पुनरोत्थान के बाद जीसस जब बापस भारत जा रहे थे तब उनके भक्त यहूदियों ने मार्था और सारा को फिलिस्तीन से निकाल कर बड़े गोपनीय तरीके से फ्रांस भिजवा दिया|
जीसस क्राइस्ट हुए थे और उनकी कब्र अभी भी कश्मीर के पहलगाम में है| उन की कब्र वहीं हैं जहाँ हज़रत मूसा की कब्र है| दोनों की कब्रें पास पास हैं| उनकी फोटो मैनें देखी है| जीसस की माता मेरी की कब्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मरी नामक स्थान पर है| उसकी फोटो मैनें देखी है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
२५ दिसंबर २०१८
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पुनश्चः :--- ईस्वी कैलेंडर कई बार संपादित हुआ है।यह सब इतिहास में दर्ज है।अतः उसमें कई तारीखों में अंतर आ गया है।

4 comments:

  1. यीशु के जन्म का कोई प्रमाण कभी भी नहीं मिला| अब पश्चिमी जगत के कुछ इतिहासकार भी यह दावा कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का कोई व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं था| उनके अनुसार सैंट पॉल द्वारा रचित वे एक काल्पनिक चरित्र हैं| पर २५ दिसंबर का दिन रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन द ग्रेट ने ही तय किया था| जीसस क्राइस्ट भौतिक रूप से कभी हुए या नहीं इससे मुझे कोई मतलब नहीं है| मेरा सम्बन्ध सिर्फ कृष्ण-चैतन्य यानी कूटस्थ चैतन्य से है जो कहते हैं कि जीसस में भी थी और जो सदा मेरे साथ है|

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  2. यीशु के जन्म का कोई प्रमाण कभी भी नहीं मिला| अब पश्चिमी जगत के कुछ इतिहासकार भी यह दावा कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का कोई व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं था| उनके अनुसार सैंट पॉल द्वारा रचित वे एक काल्पनिक चरित्र हैं| पर २५ दिसंबर का दिन रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन द ग्रेट ने ही तय किया था| जीसस क्राइस्ट भौतिक रूप से कभी हुए या नहीं इससे मुझे कोई मतलब नहीं है| मेरा सम्बन्ध सिर्फ कृष्ण-चैतन्य यानी कूटस्थ चैतन्य से है जो जीसस में भी थी और जो सदा मेरे साथ भी है| यूरोप के ही कई इतिहासकार अब यह दावा भी करते हैं कि जीसस क्राइस्ट ने मार्था से विवाह भी किया था और सारा नाम की एक पुत्री भी उन्हें हुई थी| मार्था की कब्र एक गुप्त स्थान पर फ़्रांस में थी, जिस की कई शताब्दियों तक एक सम्प्रदाय ने रक्षा की| उस सम्प्रदाय के लोगों को बाद में वेटिकन ने मरवा दिया और उस कब्र को नष्ट कर दिया गया| कुछ इतिहासकारों के अनुसार अपने पुनरोत्थान के बाद जीसस जब बापस भारत जा रहे थे तब उनके भक्त यहूदियों ने मार्था और सारा को फिलिस्तीन से निकाल कर बड़े गोपनीय तरीके से फ्रांस भिजवा दिया| जीसस क्राइस्ट हुए थे और उनकी कब्र अभी भी कश्मीर के पहलगाम में है| उन की कब्र वहीं हैं जहाँ हज़रत मूसा की कब्र है| दोनों की कब्रें पास पास हैं| जीसस की माता मेरी की कब्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मरी नामक स्थान पर है| उसकी फोटो मैनें देखी है|

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  3. रोम के सम्राट कोंसटेंटाइन दी ग्रेट ने ही यह तय किया था कि जीसस का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ| उपरोक्त रोमन सम्राट एक सूर्योपासक था, ईसाई नहीं| उस जमाने में सबसे छोटा दिन 24 दिसंबर होता था (अब 22 दिसंबर)| 25 दिसंबर से दिन बड़ा होने लगता था अतः उसे जीसस का जन्मदिन उसने घोषित कर दिया|

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  4. मुझे पूरा विश्वास है कि भारत के ज्योतिषी एक न एक दिन जीसस क्राइस्ट के जन्म की सही तिथि और वास्तविक समय का पता उनके जीवन की मुख्य घटनाओं के समय की ग्रह-स्थिति के आधार पर लगा लेंगे| भारतीय ज्योतिष में सूली की सजा पाने वाले व्यक्ति की कुंडली में विशेष ग्रह स्थिति का वर्णन है| जीसस क्राइस्ट को सूली की सजा हुई थी और वे बच कर भारत आ गये थे जहाँ कश्मीर के पहलगाम में उन की मृत्यु हुई| जीसस १३ वर्ष की आयु में भारत आये थे और जगन्नाथपुरी व कश्मीर के कई स्थानों पर रहकर वैदिक सनातन धर्म और बौद्ध मत का अध्ययन किया था| उन्होंने बापस अपने देश फिलिस्तीन जाकर जो उपदेश दिए वे भगवान श्रीकृष्ण के ही उपदेश थे| क्रिश्चियनिटी वास्तव में कृष्ण-नीति है| जो चर्चा के केंद्र थे वे चर्च कहलाये, उन को गिरिजाघर भी कहा जाता था| एक मित्र ज्योतिषी के अनुसार जीसस की कुंडली में गजकेसरी योग, वैराग्य योग, अकाल मृत्यु योग, आदि स्पष्ट दिखते हैं| वे एक यहूदी थे और यहूदी के रूप में ही मरे| उन्होंने कोई मत नहीं चलाया| जो मत उनके नाम से चला वह तो सैंट पॉल ने चलाया था|

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